कृष्णभक्ति काव्य शाखा की प्रवृत्तियाँ
कृष्ण भक्ति काव्य में रस,आनंद, और प्रेम की अभिव्यक्ति का माध्यम श्रीकृष्ण या राधाकृष्ण की लीला बनी है । इस काव्य की प्रवृत्तियाँ इस प्रकार से हैं :-
- विषय-वस्तु की मौलिकता : हिंदी साहित्य में कृष्ण काव्य की सृष्टि से पूर्व संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश साहित्य में कृष्ण भक्ति की पर्याप्त रचनाएँ मिलती हैं । यद्यपि इस सारे कृष्णकाव्य का आधारग्रंथ श्रीमद भागवत है, परंतु उसे मात्र भागवत का अनुवाद नहीं कहा जा सकता । कृष्ण चरित्र के वर्णन में इस धारा के कवियों ने मौलिकता का परिचय दिया है । भागवत में कृष्ण के लोकरक्षक रूप पर अधिक बल दिया है, जबकि भक्त कवियों ने उसके लोक रंजक रूप को ही अधिक उभारा है । इसके अतिरिक्त भागवत में राधा का उल्लेख नहीं है, जबकि इस साहित्य में राधा की कल्पना करके प्रणय में अलौकिक भव्यता का संचार हुआ है । विद्यापति और जयदेव का आधार लेते हुए भी इन कवियों के प्रणय-प्रसंग में स्थूलता का सर्वथा अभाव है । अपने युग और परिस्थितियों के अनुसार कई नए प्रसंगों की उद्भावना हुई है ।
- ब्रह्म के सगुण रूप का मंडन और निर्गुण रूप का खंडन : कृष्णभक्त कवियों ने ब्रह्म के साकार और सगुण रूप को ही भक्ति का आधार माना है, कृष्ण-काव्य के माध्यम से उन्होंने ब्रह्म के निराकार रूप का खंडन कर सगुण की प्रतिष्ठा की है । सब विधि अगम विचारहिं, तातें सूर सगुन लीला पद गावै ।
- भक्ति-भावना : वात्सल्य, सख्य, माधुर्य एवं दास्य भाव की भक्ति का प्राधान्य इस काव्य में मिलता है । वात्सल्य भाव के अंतर्गत कृष्ण की बाल-लीलाओं, चेष्टाओं एवं मां यशोदा के ह्रदय की सुंदर झांकी मिलती है । सख्य भाव के अंतर्गत कृष्ण और ग्वालों की जीवन संबंधी सरस लीलाएँ हैं और माधुर्य भाव के अंतर्गत गोपी-लीला प्रमुख है । इन कवियों ने दास्यभाव के विनय पद भी लिखे हैं ; किंतु अधिकतर सख्य अथवा कांताभाव को ही अपनाया है । कांताभाव में परकीया प्रेम को अधिक महत्व दिया है । इसके अलावा नवधा भक्ति के अंगों का भी वर्णन है ।
- वात्सल्य और बाल-मनोविज्ञान का सजीव चित्रण : वात्सल्य रस का अनुपम चित्रण हुआ है । बालकृष्ण की चेष्टाओं का सूक्ष्म और सजीव चित्रण जैसा इन कवियों ने किया है, वैसा अन्यत्र नहीं मिलता । - मैया, कबहुँ बढ़ेगी चोटी । किती बार मोहिं दूध पियत भई अजहूँ है यह छोटी ।
- रस-वर्णन : अधिकतर शांत रस का प्रयोग हुआ है। कृष्ण की विस्मयकारी अलौकिक लीलाओं के कारण अद्भूत -रस का भी निरुपण हुआ है । मुख्य रस भक्ति ही ठहरता है जिसमें वत्सल, श्रृंगार और शांत रसों का मिश्रण है । यत्र -तत्र निर्वेद का भी चित्रण विशेषत: सूर और मीरा के काव्य में मिलता है। माधुर्य भाव का चित्रण अद्वितीय रूप से हुआ है ।शृंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का अत्यंत मनोहारी वर्णन हुआ है । राधा-कृष्ण के रूप-चित्रण में नख-शिख वर्णन और श्रृंगारिक संबंध -चित्रण में नायक-नायिका भेद के वर्णन का भी विकास हुआ है । वियोग श्रृंगार के लिए भ्रमरगीत प्रसंग अत्यंत महत्वपूर्ण है । संयोग वर्णन : तुम पै कौन दुहावै गैया ? इत चितवन उत धार चलावत, यहै सिखायो मैया ? वियोग वर्णन : कहा परदेशी को पतिआरो? प्रीति बढ़ाय चले मधुबन को, बिछुरि दियो दु:ख भारो ।
- संगीतात्मकता : कृष्ण काव्य संगीतात्मक है । संगीत की राग-रागिनियों का प्रयोग प्राय: सभी कवियों ने किया है । आज भी संगीत के क्षेत्र में इन पदों का महत्व अमिट है । सूर , मीरा, हितहरिवंश, हरिदास आदि कवियों के पदों में संगीत की पूर्व छटा है ।
- प्रकृति चित्रण : भाव-प्रधान काव्य होने के कारण इसमें प्रकृति चित्रण उद्दीपन रूप में अर्थात पृष्ठभूमि रूप में हुआ है । फिर भी प्रकृति के कोमल और कठोर, मनोरम और भयानक दोनों रूपों का समावेश हुआ है । जहां संसार का सौंदर्य इनकी आंखों से छूट नहीं सका है वहीं मानव ह्रदय के अमूर्त सौंदर्य-चित्रण में कल्पना और भाव अपूर्व वर्णन हुआ है ।
- सामाजिक पक्ष : यद्यपि भगवान की लीलाओं का ही चित्रण अधिक हुआ है, लेकिन इसके साथ-साथ लोक-मंगल की भावना भी स्वत: समाविष्ट हो गई । उद्धव-गोपी संवाद में उद्धव को लक्षित करके अलखवादी, स्वाभिमानी, निष्फल कायाकष्ट को ही सर्वश्रेष्ठ साधन मानने वाले योगियों की अच्छी खबर ली है । उपदेशात्मकता का अभाव है । संपूर्ण काव्य सरस और रमणीय है ।
- काव्य-रूप : संपूर्ण साहित्य मुक्तक शैली में ही है । अधिकांश रचना गेय पदों में के रूप में हुई है । कुछ कवियों ने सवैया, घनाक्षरी अथवा अन्य छंदों का भी प्रयोग किया है ।
- शैली : गेय शैली का प्रयोग हुआ है । गीति-काव्य के सभी तत्त्व यथा भावप्रणता, आत्माभिव्यक्ति, संगीतात्मकता, संक्षिप्तता, भाषा की कोमलता आदि मिलते हैं ।
- छंद : गीति-पद, चौपाई, सार और सरसी । दोहा, कवित्त, सवैया, छप्पय, गीतिका, हरिगीतिका आदि छंदों का प्रयोग ।
- भाषा : कृष्णभक्ति काव्य में अत्यंत ललित और प्रांजल ब्रजभाषा के दर्शन होते हैं । भाव और भाषा दोनों दृष्टियों से कृष्ण काव्य सम्पन्न है ।
वाह बहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपके पोस्ट के दौरान ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई! धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा पढ़ कर मजा आया और जानकर भी मिली
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ................
काफी गहन शोध किया है आपने इस विषय पर अच्छी जानकारी के लिए आभार
जवाब देंहटाएंआपको व आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंकृष्णभक्त कवियों ने ब्रह्म के साकार और सगुण रूप को ही भक्ति का आधार माना है, कृष्ण-काव्य के माध्यम से उन्होंने ब्रह्म के निराकार रूप का खंडन कर सगुण की प्रतिष्ठा की है
जवाब देंहटाएंbahut sundar jaankaari main dhyaan se padhte jaa rahi thi aur aapke is sodh par vichar karti jaa rahi thi ,shaily kavya doha sabhi ke baare me kitni sundarata se bataya hai .taarife kaabil hai .
कृष्ण भक्ति का अनोखा हिन्दी साहित्य है ,इसके आगे तो दुनिया नतमस्तक है
जवाब देंहटाएंwww.sahitya.merasamast.com
संग्रहणीय व शोधपरक ।
जवाब देंहटाएंएक सार्थक कार्य और जटिल कार्य के लिए शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंकाफी महत्वपूर्ण जानकारी..ज्ञानवर्धक लेख..बधाई.
जवाब देंहटाएं___________
'शब्द सृजन की ओर' पर आपका स्वागत है !!
बधाई ही खुप छान
हटाएंAap ka blog bahut hi knowladge se purn hai..mujhe bar bar ana padega..Regards
जवाब देंहटाएंThe Lines Tells The Story of Life....Discover Yourself
Awesome vry easy nd informative... Thank s.🙏
हटाएंvery informative post ...thanks.
जवाब देंहटाएंAp ne bahut satik jankari Di esake liye dhanyawad
जवाब देंहटाएंYour work is adorable...
जवाब देंहटाएंKeep it up...
Bahut hi acha likha hai
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