नई कविता

प्रयोगवाद व नई कविता में भेद रेखा स्पष्ट नहीं है। एक प्रकार से प्रयोगवाद का विकसित रूप ही नई कविता है। प्रयोगवाद को इसके प्रणेता अज्ञेय कोई वाद नहीं मानते। वे तार-सप्तक(1943) की भूमिका में केवल इतना ही लिखते हैं कि संगृहीत सभी कवि ऐसे होंगे जो कविता को प्रयोग का विषय मानते हैं जो यह दावा नहीं करते कि काव्य का सत्य उन्होंने पा लिया है। केवल अन्वेषी ही अपने को मानते हैं।" साथ ही अज्ञेय ने यह भी स्पष्ट किया कि "वे किसी एक स्कूल के नहीं हैं,किसी मंजिल पर पहुंचे हुए नहीं हैं,अभी राही हैं-राही नहीं,राहों के अन्वेषी। उनमें मतैक्य नहीं है,सभी महत्त्वपूर्ण विषयों पर उनकी राय अलग-अलग है। इस प्रकार केवल काव्य के प्रति एक अन्वेषी का दृष्टिकोण उन्हें समानता के सूत्र में बांधता है। प्रयोगवाद नाम इस काव्य-विशेष के विरोधियों या आलोचकों द्वारा दिया गया। अज्ञेय ने प्रयोगवाद नाम का लगातार प्रतिवाद किया है। उनका कहना है कि "प्रयोग कोई वाद नहीं है-फिर भी आश्चर्य की बात है कि यह नाम व्यापक स्वीकृति पा गया। प्रयोग शब्द जैसे'एक्सपेरिमेंट का हिंदी पर्याय है वैसा ही 'एक्सपेरिमेंटलिज्म जैसा कोई समानांतर आधार नहीं मिलता है। इस प्रकार का कोई वाद यूरोपीय साहित्य में भी नहीं चला।" प्रगतिवादियों और नंददुलारे वाजपेयी ने अज्ञेय और प्रयोग की दृष्टि पर जो आक्षेप लगाए ,उनका करारा जवाब अज्ञेय ने दूसरा सप्तक(1951) और तीसरा सप्तक(1959) की भूमिकाओं में दिए हैं।

दूसरा सप्तक की भूमिका में यह स्पष्ट कहा गया कि "प्रयोगवाद कोई वाद नहीं है। इन कवियों को प्रयोगवादी कहना इतना ही सार्थक या निर्थक है जितना इन्हें कवितावादी कहना।" दूसरे सप्तक के अधिकांश कवियों के वक्तव्यों में नए कवियों का उल्लेख हुआ है और स्वयं अज्ञेय ने लिखा है कि " प्रयोग के लिए प्रयोग इन में से भी किसी ने नहीं किया है,पर नई समस्याओं और नए दायित्वों का तकाजा सब ने अनुभव किया है और उससे प्रेरणा सभी को मिली है। दूसरा सप्तक नए हिंदी काव्य को निश्चित रूप से एक कदम आगे ले जाता है।

सन 1951 में एक रेडियो गोष्ठी हुई थी,जिसमें सुमित्रानंदन पंत,भगवती चरण वर्मा,अज्ञेय,धर्मवीर भारती और शिवमंगल सिंह सुमन जैसे कवियों ने भाग लिया। इस गोष्ठी में नवीन प्रवृत्ति वाली कविता धारा के लिए प्रयोग शब्द का प्रयोग हुआ। लेकिन अज्ञेय ने तारसप्तकीय कविता के लिए नई कविता नाम की प्रस्तावना की। इसी  नाम को लेकर सन 1953 में "नए पत्ते" नाम से और सन 1954 में "नई कविता"नाम से पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरु हुआ। "नए पत्ते" का संपादन डॉ.रामस्वरूप चतुर्वेदी और डॉ लक्ष्मीकांत वर्मा ने संभाला। "नई कविता" का संपादन दायित्व डॉ.रामस्वरूप चतुर्वेदी और डॉ. जगदीश गुप्त ने उठाया। यहीं से प्रयोगवादी कही जाने वाली कविता को एक नया नाम "नई कविता" मिल गया। "नई कविता" 1954 से 1967 तक प्रकाशित होती रही। जो एक अर्धवार्षिक पत्रिका थी। इस पत्रिका में नए-नए कवियों को स्थान मिलने लगा। लक्ष्मीकांत       वर्मा,सर्वेश्वर,कुंवर नारायण,विपिन कुमार अग्रवाल और श्रीराम वर्मा जैसे कवि इस पत्रिका की ही देन हैं। इन कवियों की रचनाएं रघुवंश,विजयदेवनारायण साही,अज्ञेय जैसे काव्य मर्मज्ञों के लेखों के साथ प्रकाशित होती थी। जिसमें नवीन भावों को प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया जाता था। अंधा-युग और कनुप्रिया के अंश सर्वप्रथम नई कविता में ही प्रकाशित हुए,जिनमें आधुनिक संवेदना की एक विशिष्ट पहचान मौजूद थी। संचयन स्तंभ के अंतर्गत अनेक युवा कवियों को स्थान मिला।

उल्लेखनीय है कि नई कविता का नामकरण अज्ञेय द्वारा ही किया गया है और वे इस नाम के अंतर्गत तार-सप्तकों के कवियों या बाद में परिमल, प्रतीक,नए पत्ते,नई कविता में स्थान पाने वाले कवियों की रचनाओं के लिए करना अधिक सही पाते हैं,बजाय प्रयोगवाद के।

इस नाम को अपनाने से जहां समसामयिक युग बोध का बोध होता है वहीं पूर्ववर्ती कवियों से विषय-वस्तु और शैली की भिन्नता भी स्पष्ट हो जाती है। वास्तव में यह नाम सन 1930 में लंदन में ग्रियर्सन द्वारा न्यू वर्स(New Verse) नाम से संपादित पत्रिका का अक्षरश: हिंदी अनुवाद है। दूसरे महायुद्ध के कुछ वर्ष पूर्व से ही यूरोपीय साहित्य में,विशेषकर फ्रेंच और अंग्रेजी में परम्परा से मुक्त,नए ढ़ग की कविताओं का चलन शुरु हो गया था। इनमें जहां एक ओर बुद्धिवाद का आधार लिया गया वहीं दूसरी ओर वस्तुवाद पर आधारित भावात्मक प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति भी थी। अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि 'इलियट' तथा 'लारेंस' में ये दोनों विशेषताएं देखी जा सकती हैं। अंग्रेजी के मार्क्सवादी कवि 'ओडेन' का नाम भी इस नए आंदोलन के साथ जुड़ा है। सन 1950 के  आसपास विदेशों में समसामयिक कविता को नई कविता(New Poetry ) कहने का रिवाज़ चला। जी.एस.फेजर ने समसामयिक कविता को न्यूमूवमैंटस कहा। डेनाल्ड हाल ने अमरीका की विगत 15 वर्षों की कविता में प्रगति को "न्यू पोइट्री" कहा। अन्य यूरोपीय व एशियाई देशों में भी नई पीढ़ी की काव्य रचना को नूतन नामों द्वारा अभिहित किया गया। भारत में भी यह हवा आई और अब तक प्रयोगवादी नाम से बदनाम कविता नई कविता हो गई।

कुछ आलोचक नई कविता और प्रयोगवाद को अलग करने के लिए "नई कविता" को समाजोन्मुख मानते हैं,जबकि प्रयोगवाद को घोरअहंनिष्ठ। उनके अनुसार नई कविता में सामाजिक तनावों.सामाजिक मूल्यों,सामाजिक वैषम्यों और कुंठाओं को स्वस्थ अभिव्यक्ति मिली है जबकि प्रयोगवाद में यह पूर्णत: वैयक्तिक और नग्न थी और समाज से पूरी तरह कटी हुई थी। नई कविता समाज सापेक्ष बनी है,जबकि प्रयोगवादी कही जाने वाली कविता पूर्णत: समाज-निरपेक्ष थी। डॉ. धर्मवीर भारती ने लिखा है कि "प्रयोगवादी कविता में भावना है,किंतु हर भावना के आगे प्रश्न चिह्न लगा है। इसी प्रश्न चिह्न को आप बौद्धिकता कह सकते हैं।" परंतु नई कविता प्रयोगवाद की अगली कड़ी इस अर्थ में है कि अब कवियों ने प्रश्न-चिह्नों के उस आवरण को उतार फैंका है। अब यह कविता प्रश्न चिह्न मात्र न रहकर समाज और जीवन के व्यापक सत्यों को खंड-खंड चित्रों के रूप में ही सही साधारणीकृत होकर समग्र प्रकार की सम्प्रेषणीयता से अन्वित हो गई है। इसमें साधारणीकरण की समस्या अब नहीं रह गई है।

कविता के पुराने आचार्यों और समीक्षकों व आलोचकों ने नई कविता का बड़ा भारी विरोध किया। यह विरोध छायावाद भी झेल चुका था और प्रयोगवाद भी। लेकिन नई कविता ने मूल्यबोध की जो समस्याएं उठाई,उसके सम्मुख पुरानी पीढ़ी को पस्त होना पड़ा। डॉ.लक्ष्मीकांत वर्मा ने पुराने आलोचकों को जवाब देने के लिए "नई कविता के प्रतिमान" पुस्तक लिखी। जिस पर व्यापक चर्चा हुई। 'अर्थ की लय', 'रसानुभूति और सहानुभूति','लघुमानव के बहाने हिंदी कविता पर एक बहस' जैसे निबंधों से आलोचना के क्षेत्र के दिग्गज़ आलोचक भी भौचका रह गए। रस सिद्धांत को चुनौती देकर कहा गया कि कविता का नया सोंदर्य बोध अब रस प्रतिमान से नहीं समझा-समझाया जा सकता है क्योंकि रस का आधार है अद्वंद्व,समाहिति,संविद विश्रांति जबकि नई कविता का आधार है द्वंद्व,तनाव,घिराव,संघर्ष,बेचैनी,चित्त की व्याकुलता,बौद्धिक तार्किक स्थिति। नई कविता भाव केंद्रित न होकर विभाव या विचार के तनाव की कविता है जिससे जीवन जगत के वास्तविक दुखते-कसकते अनुभवों को स्थान मिलता है। इस प्रकार नई कविता आन्दोलन में काव्य की अंतर्वस्तु,प्रयोग-परम्परा-आधुनिकता,समसामयिकता,प्रतीक,काव्य-बिम्ब,अर्थ की लय,काव्य-य़ात्रा की सर्जनात्मकता, मिथक आदि पर नए ढ़ग से विचार किया गया।

नई कविता के अधिकांश कवि तार-सप्तकों के ही कवि हैं तथा प्रयोगवादी और नई कविता में बहुत कुछ समतापरक होने पर भी साठोत्तरी कवियों ने नई कविता को प्रयोगवाद के पर्यायवाची के रूप में स्वीकार नहीं किया और उसे अनेक नाम देकर प्रयोगवाद से अलग ठहराया।

अब नई कविता पर कुछ विद्वानों की दृष्टि पर  नजर डालें:-
डॉ. रघुवंश : नई कविता में अन्वेषण की दिशा में नए क्षितिज उभर आए हैं, यथार्थ को नई दृष्टि मिली है,संक्रमण के बीच नए मूल्यों की संभावना आभासित हुई है,साथ ही भाव-बोध के नए स्तरों और आयामों को उद्-घाटित करने के लिए उपयुक्त भाषा-शैली तथा शिल्प की उपलब्धि भी हुई है।

डॉ. यश गुलाटी : यह नया नाम वास्तव में उन कविताओं के लिए रुढ़ हो गया है जो आजादी के बाद बदले हुए परिवेश में जिंदगी की जटिल और चकरा देने वाली वास्तविकताओं को झेल रहे मानव की परिवर्तित संवेदनाओं को नए मुहावरों में अभिव्यक्त करती हैं।

डॉ. रामदरश मिश्र : नई कविता भारतीय स्वतंत्रता के बाद लिखी गई उन कविताओं को कहा गया जिनमें परम्परागत कविता से आगे भावबोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नए मूल्यों और नए शिल्प विधान का अन्वेषण किया गया है।

डॉ. गणपतिचंद्र गुप्त : नई कविता नए समाज के,नए मानव की,नई वृत्तियों की,नई अभिव्यक्ति,नई शब्दावली में है,जो नए पाठकों के नए दिमाग पर नए ढ़ग से नया प्रभाव उत्पन्न करती है।

डॉ. जगदीश गुप्त : वह नई कविता उन प्रबुद्ध विवेकशील आस्वादकों को लक्षित करके लिखी जा रही है,जिनकी मानसिक अवस्था और बौद्धिक-चेतना नए कवि के समान है--बहुत अंशों में कवि की प्रगति ऐसे प्रबुद्ध भावुक वर्ग पर आश्रित रहती है। 

टिप्पणियाँ

  1. मनोज जी, कविता की यात्रा कथा का यह पड़ाव सचमुच आपकी अन्य कड़ियों की तुलना में अधिक व्यापक है. किन्तु भारतीय और पाश्चात्य परिभाषाओं और प्रचलन के माध्यम से आपने इसे बहुत ही सुंदरता से व्याख्यायित किया है.. इस आलेख पर एक बार पढकर कोई भी टिप्पणी नहीं की जा सकती, गहनता से अध्ययन करने की आवश्यकता है.. यदि एक वाक्य में कहूँ तो कविता की सुरसरी को हमतक पहुंचाने का भागीरथ प्रयत्न आपने किया है, और इसके लिए आप साधुवाद के पात्र हैं!!

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  2. नई कविता ने साहित्य जगत को एक नई दिशा दी। एक संग्रहणीय आलेख के लिए धन्यवाद।

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  3. बढिया ज्ञानवर्धक आलेख
    अच्छी जानकारी

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  4. nai kavita per ek sangrahaniy alekh ke liye badhai.

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  5. किस आलोचक ने नई कविता की व्याख्या भी रस सिद्धांत के अनुरूप की है

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    1. dr. nagendra ne rsanubhuti ke anusar ki. jbki jagdish gupt ne nagendra ko uttar dene ke liye sah anubhuti ka pryog kiya

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  6. नई कविता का प्रकाशन कहा से होता है

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  7. बहुत ही सराहनीय और सटीक जानकारी

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  8. संकल्पना को स्पष्ट कर अवबोध योग्य🙏🏻🙏🏻

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  9. https://hindigrema.blogspot.com/2020/05/history-of-hindi-literature-experimentalism.html

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  10. नई कविता के लिए लिखा गया यह आलेख कई दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है । आज अधिकांश रचनाकार नई कविता के प्रवृत्तियों को न समझते हुए रचनाएं लिख रहे हैं, उनकी समझ के लिए उसे पढ़ना अत्यंत आवश्यक है

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