द्विवेदी युग की प्रवृत्तियाँ
पिछली पोस्ट में हमने द्विवेदी युग की प्रस्तावना को जाना। इस पोस्ट में हम द्विवेदी युग की प्रवृत्तियों पर चर्चा करेंगे:-
1. राष्ट्रीय-भावना या राष्ट्र-प्रेम - इस समय भारत की राजनीति में एक महान परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रयत्न तेज और बलवान हो गए। भारतेंदु युग में जागृत राष्ट्रीय चेतना क्रियात्मक रूप धारण करने लगी। उसका व्यापक प्रभाव साहित्य पर भी पड़ा और कवि समाज राष्ट्र-प्रेम का वैतालिक बनकर राष्ट्र-प्रेम के गीत गाने लगा।
जय जय प्यारा भारत देश ... श्रीधर पाठक
संदेश नहीं मैं यहां स्वर्ग लाया
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया ... मैथिलीशरण गुप्त
लोक-प्रचलित पौराणिक आख्यानों,इतिहास वृत्तों और देश की राजनीतिक घटनाओं में इन्होंने अपने काव्य की विषय वस्तु को सजाया।इन आख्यानों,वृत्तों और घटनाओं के चयन में उपेक्षितों के प्रति सहानुभूति,देशानुराग और सत्ता के प्रति विद्रोह का स्वर मुखर है।
2. रुढ़ि-विद्रोह - पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव एवं जन जागृति के कारण इस काल के कवि में बौद्धिक जागरण हुआ और वह सास्कृतिक भावनाओं के मूल सिद्धांतों को प्रकाशित कर बाहरी आडम्बरों का विरोध करने लगा । स्त्री-शिक्षा,बालविवाह,अनमेल विवाह,विधवा-विवाह,दहेज-प्रथा,अंधविश्वास आदि विषयों पर द्विवेदी युग के कवियों ने रचनाएं लिखी हैं।कवियों ने समाज की सर्वांग उन्नति को लक्ष्य बनाकर इन सभी विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं।
हे ईश,दयामय, इस देश को उबारो।
कुत्सित कुरीतियों के वश से इसे उबारो॥
अनय राज निर्दय समाज से होकर जूझो । ( मैथिलीशरण गुप्त)
इस युग के कवियों की धार्मिक चेतना भी उदार और व्यापक हुई। धार्मिक भावना केवल ईश्वर के गुण-गान तक सीमित नहीं रही,बल्कि उसमें मानवता के आदर्शों की प्रतिष्ठा है। विश्व-प्रेम तथा जनसेवा की भावना इस युग की धार्मिक भावना का मुख्य अंग है। गोपाल शरण सिंह की कविता से एक उदाहरण देखिए-
जग की सेवा करना ही बस है सब सारों का सार।
विश्वप्रेम के बंधन ही में मुझको मिला मुक्ति का द्वार॥
3. मानवतावाद: इस काल का कवि संकीर्णताओं से ऊपर उठ गया है। वह मानव-मानव में भ्रातृ-भाव की स्थापना करने के लिए कटिबद्ध है। अत: वह कहता है-
जैन बोद्ध पारसी यहूदी,मुसलमान सिक्ख ईसाई।मानवता का मूल्यांकन इस युग के कवियों की प्रखर बुद्धि ने ही किया। उनकी दृष्टि में-
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कोटि कंठ से मिलकर कह दो हम हैं भाई-भाई॥
मैं मानवता को सुरत्व की जननी भी कह सकता हूं
नर को ईश्वरता प्राप्त कराने आया।
4. शृंगार की जगह आदर्शवादिता : इस युग की कविता प्राचीन प्राचीन सांस्कृतिक आदर्शों से युक्त आदर्शवादी कविता है। इस युग के कवि की चेतना नैतिक आदर्शों को विशेष मान्यता दे रही थी,क्योंकि उन्होंने वीरगाथा काल तथा रीतिकाल की शृंगारिकता के दुष्परिणाम देखे थे। अत: वह इस प्रवृत्ति का उन्मूलन कर देश को वीर-धीर बनाना चाहता है-
रति के पति! तू प्रेतों से बढ़कर है संदेह नहीं,
जिसके सिर पर तू चढ़ता है उसको रुचता गेह नहीं।
मरघट उसको नंदन वन है,सुखद अंधेरी रात उसे
कुश कंटक हैं फूल सेज से,उत्सव है बरसात उसे॥ (रामचरित उपाध्याय)
इस काल का कवि सौंदर्य के प्रति उतना आकृष्ट नहीं,जितना कि वह शिव की ओर आकृष्ट है।
5. नारी का उत्थान - इस काल के कवियों ने नारी के महत्त्व को समझा,उस पर होने वाले अत्याचारों का विरोध किया और उसको जागृत करते हुए कहा -
आर्य जगत में पुन: जननि निज जीवन ज्योति जगाओ। (श्रीधर पाठक)
अब नारी भी लोक-हित की आराधना करने वाली बन गई। अत: प्रिय-प्रवास की राधा कहती है-
प्यारे जीवें जग-हित करें,गेह चाहे न आवै।जहां कवियों ने नारी के दयनीय रूप देखें,वहां उसके दु:ख पर आंसू बहाते हुए कहा -
अबला जीवन हाय! तुम्हारी यही कहानी।
आचल में है दूध और अआंखों में पानी ॥ ( यशोधरा में मैथिलीशरण गुप्त)
6. प्रकृति-चित्रण: द्विवेदी युग के कवि का ध्यान प्रकृति के यथा-तथ्य चित्रण की ओर गया। प्रकृति चित्रण कवि के प्रकृति-प्रेम स्वरूप विविध रूपों में प्रकट हुआ। श्रीधर पाठक,रामनरेश त्रिपाठी,हरिऔद्य तथा मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं में प्रकृति आलंबन,मानवीकरण तथा उद्दीपन आदि रूपों में चित्रित किया गया है। श्रीधर पाठक ने काश्मीर की सुषमा का रमणीय वर्णन करते हुए लिखा-
प्रकृति जहां एकांत बैठि निज रूप संवारति।
पल-पल पलटति भेष छनिक छवि छिन-छिन धारति॥
आचार्य शुक्ल प्रकृति के विभिन्न अंगों के साथ मानवीय संबंध स्थापित करते हैं। रामनरेश त्रिपाठी के 'पथिक', 'स्वप्न' जैसे खंडकाव्यों में, हरिऔद्य के 'प्रियप्रवास' में, मैथिलीशरण गुप्त के 'साकेत','पंचवटी' आदि काव्यों में प्रकृति के विविध चित्र हैं। उपाध्याय जी व गुप्त जी आदि कवियों की काव्य-भूमि ही प्रकृति का स्वच्छंद प्रांगण है -
सुंदर सर है लहर मनोरथ सी उठ मिट जाती।
तट पर है कदम्ब की विस्तृत छाया सुखद सुहाती॥
7. इतिवृत्तात्मकता- इतिवृत्तात्मकता का अर्थ है -वस्तु वर्णन या आख्यान की प्रधानता।आदर्शवाद और बौद्धिकता की प्रधानता के कारण द्विवेदी युग के कवियों ने वर्णन-प्रधान इतिवृत्तात्मकता को अपनाया।इस युग के अधिकांश कवि एक ओर तो प्राचीन ग्रंथों की महिमा, प्रेम की महिमा, मेघ के गुण-दोष, कुनैन, मच्छर,खटमल आदि शीर्षकों से वस्तु-वर्णन-प्रधान कविताओं को रच रहे थे और दूसरी ओर प्राचीन आख्यानों को नवीनता का पुट देकर उपस्थित किया जा रहा था; यद्यपि इस प्रकार की कुछ कविताएं मनोहारी हैं,हास्य-विनोदात्मक हैं, किंतु अधिकतर निरस हैं। इतिवृत्तात्मकता के कारण इस काव्य में नीरसता और शुष्कता है, कल्पना और अनुभूति की गहराई कम है, रसात्मकता एवं कोमल कांत पदावली का उसमें अभाव है।
8. स्वच्छंदतावाद - प्राचीन रुढ़ियों को तोड़कर नई शैलियों में नए काव्य विषयों को लेकर साहित्य-सर्जना की प्रवृत्ति को स्वच्छंदता कहा जाता है। हिंदी में स्वच्छंदतावादी काव्य का पूर्ण विकास छायावादी युग में हुआ। परंतु द्विवेदी युग में श्रीधर पाठक और रामनरेश त्रिपाठी में स्वच्छंदतावादी प्रवृत्तियां देखी जा सकती हैं। प्रकृति-चित्रण और नए विषयों को अपनाने के कारण रामचंद्र शुक्ल ने श्रीधर पाठक को हिंदी का पहला स्वच्छंदतावादी कवि कहा है।
9. भाषा संस्कार : द्विवेदी जी के प्रयासों के परिणामस्वरूप इस समय में साहित्य के समस्त रूपों में खड़ी बोली का एकछत्र राज्य स्थापित हो गया। उसका रूखापन जाता रहा, उसमें एकरूपता स्थापित हो गई और वह अपने शुद्ध रूप में प्रकट हुई।श्री हरदेव बाहरी के शब्दों में - "मैथिलीशरण गुप्त ने भाषा को लाक्षणिकता प्रदान की, ठाकुर गोपालशरण सिंह ने प्रवाह दिया, स्नेही ने उसे प्रभावशालिनी बनाया और रूपनारायण पांडेय,मनन द्विवेदी, रामचरित उपाध्याय आदि ने उसका परिष्कार तथा प्रचार करके आधुनिक हिंदी काव्य को सुदृढ़ किया।"
10. काव्य रूप में विविधता: इस युग में प्रबंध और मुक्तक,दोनों ही रूपों में काव्य रचनाएं हुई। प्रबंध रचना के क्षेत्र में इस युग के कवियों को अति सफलता मिली। 'प्रिय-प्रवास', 'वैदही-बनवास', 'साकेत', तथा 'राचरित-चिंतामणि' इस काल के प्रसिद्ध महा काव्य हैं। 'जयद्रथ-वध','पंचवटी','पथिक','स्वपन' आदि प्रमुख खंडकाव्य हैं। मुक्तक और गीत भी लिखे गए,परंतु अधिक सफलता प्रबंध काव्य प्रणयन में ही मिली।
11. विविध छंद : इस काल-खंड में विविध छंदों को अपनाने की प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है,फिर भी पुराने छंदों और मात्रा-छंदों की ही प्रधानता रही। श्रीधर पाठक ने कुछ नए छंदों तथा मुक्त-छंदों का भी प्रयोग किया।
12. शैली : शैली की दृष्टि से इस युग का काव्य विविधमुखी है। गोपालशरण सिंह आदि पुराने ढ़ंग के और नई शैली के मुक्तक लिख रहे थे तथा उपाध्याय एवं गुप्त जी प्रबंध शैली को महत्व दे रहे थे। गीति-शैली के काव्यों का सृजन भी होने लगा था।काव्य के कलेवर के निर्माण में स्वच्छंदता से काम लिया गया।
13.अनुवाद कार्य : इन सबके अतिरिक्त अंग्रेजी और बंगला से अनुवाद करने की प्रवृत्ति,भक्तिवाद की ओर झुकाव आदि अन्य नाना गौण प्रवृत्तियां भी इसी काल में देखी जाने लगी थी।
इस प्रकार,हम कह सकते हैं कि द्विवेदी युग आधुनिक काव्य धारा का रमणीय तट है,जो उसे निश्चित और समुचित दिशा की ओर ले जा रहा है। उस समय प्रयोगात्मक काव्य जैसे भावी युगों के काव्य को विकसित होने का अवसर प्राप्त हुआ है।
एक युग का गहन वर्णन... किसी भी साहित्य के विद्यार्थी के लिए यह अमूल्य सिद्ध हो सकता है!!
जवाब देंहटाएंआपका प्रयास सराहनीय है मनोज जी!!
बहुत ही काम की जानकारी यहां संचित हैं। बुकमार्क कर लिया है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी जानकारी है यह इस युग की. किंतु मेरा आपसे निवेदन है कि कृपा करके आधुनिक काल की प्रवृत्तियाँ में कुछ पोस्ट किया जाए.
जवाब देंहटाएंSame thing
हटाएंसराहनीय प्रयास।धन्याद
जवाब देंहटाएंBahut hi sarahniya priyas
जवाब देंहटाएंBahut achcha likha gya yha par
जवाब देंहटाएंKisi bhi student ko padne me problem ni hogi
हिंदी कहानी का विकास भी लिखे !! 🙏
जवाब देंहटाएंइससे life बन गया pracentege आगे भाग गया
जवाब देंहटाएंImportant material.
जवाब देंहटाएंGood job sir ji
जवाब देंहटाएंकृपया इसके साथ ही प्रमुख कवि एवं उनकी प्रमुख रचनाओं का भी उल्लेख करें।महान दया होगी।
जवाब देंहटाएंBhut accha sair ji
जवाब देंहटाएंMai B A ker rha Allhabad eswer saren degree college see
Kripa kerky Mera margdarsan kriye ye Mera no.7068444911 Hai Apki bhut kripa hogi guruji
Mujhe samejh nhi a rha kis prkaar see utter lekha Jaye acche marks mele
Qwestion bhi samejhny men mujhe problem hoti hai
Please guruji🙏🙏
Aapne joh ye likha hai sir sahi me yhah ham jaise vidhyarthi ke liye aupiyogik hai aur samjhane me bhi koi kathinai hani hai; iske liye aapko dil se dhanyvad sir🙏
जवाब देंहटाएंRurhi vidroh par punah vichar karen, dvivedi yug me sambhavtah vidrohi pravritti nhi milti hai, ye chhayavadi kaviyon ki pravritti hai.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 14 दिसम्बर 2019 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
युग और उनकी विशेषता https://gyanjyotimantra.blogspot.com/2019/12/Gyanmantra..html?m=1
जवाब देंहटाएंइतिवृत्तात्मक का मतलब
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंLge rho munna
जवाब देंहटाएंHelpful
जवाब देंहटाएंबहुत ही सराहनीय कार्य किये धन्यवाद
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