रीति ग्रंथकार कवि और उनकी रचनाएँ
संस्कृत में काव्यांग निरूपण शास्त्रज्ञ आचार्य करते थे, कवि नहीं । वे काव्यविवेचन के दौरान प्रसिद्ध कवियों की रचनाओं को उद्धृत करके अपनी बात समझाते थे । लेकिन रीतिकाल में रीति ग्रंथ लिखने वाले या काव्य पर विचार करने वाले आचार्य नहीं ,मूलत: कवि ही थे । इसलिए उन्होंने नायकों,नायिकाओं,रसों,अलंकारों,छंदों के विवेचन पर कम, इनके दिए गए लक्षणों के उदाहरणों के रूप में रचनाओं पर ज्यादा ध्यान दिया । उन्होंने अन्य कवियों की रचनाओं के उदाहरण नहीं दिए बल्कि स्वयं काव्य रचा । इसलिए इस काल के रीति ग्रंथाकार आचार्य और कवि दोनों एक ही होने लगे । लेकिन इस संदर्भ में यह स्मरण रखना चाहिए कि ये दोनों कार्य , कवि-कर्म और आचार्य कर्म परस्पर विरोधी हैं । कवि के लिए भावप्रवण हृदय चाहिए वहीं आचार्य कर्म की सफलता के लिए प्रौढ़-मस्तिष्क और सर्वांग-पूर्ण संतुलित विवेचन शक्ति की अपेक्षा हुआ करती है । रीतियुगीन रीति-ग्रंथाकार पहले कवि है, आचार्य कर्म तो उसे परम्परावश और राजदरबार में रीतिशास्त्र के ज्ञान की अनिवार्यतावश अपनाना पड़ा । इस युग के प्रमुख रीतिग्रंथकार कवि और उनकी रचनाओं का विवरण हम नीचे दे रहे हैं : क