हालावाद
छायावादी काव्य का एक पक्ष स्वच्छंदतावाद प्रखर होकर व्यक्तिवादी-काव्य में विकसित हुआ। इस काव्य में समग्रत: एवं संपूर्णत: वैयक्तिक चेतनाओं को ही काव्यमय स्वरों और भाषा में संजोया-संवारा गया है।डॉ.नगेन्द्र ने छायावाद के बाद और प्रगतिवाद के पूर्व को 'वैयक्तिक कविता' कहा है। उनके अनुसार, "वैयक्तिक कविता छायावाद की अनुजा और प्रगतिवाद की अग्रजा है, जिसने प्रगतिवाद के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया। यह वैयक्तिक कविता आदर्शवादी और भौतिकवादी,दक्षिण और वामपक्षीय विचारधाराओं के बीच का एक क्षेत्र है।"इसे 'वैयक्तिक कविता' या 'हालावाद' या 'नव्य-स्वछंदतावाद' या 'उन्मुक्त प्रेमकाव्य' या 'प्रेम व मस्ती के काव्य' आदि संज्ञाओं से अभिहित किया गया है। इस धारा के प्रमुख कवि हैं- हरिवंशराय बच्चन, भगवतीचरण वर्मा, रामेश्वर शुक्ल 'अंचल', नरेन्द्र शर्मा आदि। कुछ इतिहासकारों व आलोचकों ने व्यक्तिचेतना से विनिर्मित इस काव्यधारा को हालावाद का नाम इस कारण से दिया है, क्योंकि इसमें अपनी ही मस्ती,अल्हड़ता एवं अक्खड़ता है, इसलिए इस नाम को अनुपयुक्त नहीं कहा ज