रहस्यवाद
द्विवेदी युग के अनंतर हिंदी कविता में एक ओर छायावाद का विकास हुआ वहीं दूसरी ओर रहस्यवाद और हालावाद का प्रादुर्भाव हुआ। वस्तुत: रहस्यवाद, बल्कि कहना चाहिए आधुनिक रहस्यवाद छायावादी काव्य-चेतना का ही विकास है। प्रकृति के माध्यम से मात्र सौंदर्य-बोध तक सीमित रहने वाली और साथ ही प्रकृति के माध्यम से प्रत्यक्ष जीवन का चित्रण करने वाली धारा छायावाद कहलाई; पर जहां प्रकृति के प्रति औत्सुक्य एवं रहस्यमयता का भाव भी जाग्रत हो गया वहां यह रहस्यवाद में परिवर्तित हो गई।जहां वैयक्तिकता का भाव प्रबल हो गया,वहां यह धारा हालावाद के रूप में सर्वथा अलग हो गई। छायावाद और रहस्यवाद का मुख्य अंतर यह है कि छायावाद में प्रकृति पर मानव जीवन का आरोप है और यह प्रकृति प्रेम तक ही सीमित रहता है,किंतु रहस्यवाद में प्रकृति के माध्यम से उस अज्ञात-अनंत शक्ति के साथ संबंध स्थापित करने का प्रयत्न होता है,जो सहज ही प्राप्य नहीं है। इस तथ्य को दूसरे शब्दों में य़ों भी कह सकते हैं कि "छायावाद में प्रकृति अथवा परमात्मा के प्रति कुतूहल रहता है, पर जब यह कुतूहल आसक्ति का रूप धारण कर लेता है,तब वहां से रहस्यवाद की सीमा...