छायावाद क्या है?

द्विवेदी युग के पश्चात हिंदी साहित्य में जो कविता-धारा प्रवाहित हुई, वह छायावादी कविता के नाम से प्रसिद्ध हुई। छायावाद की कालावधि सन् 1917 से 1936 तक मानी गई है। वस्तुत: इस कालावधि में छायावाद इतनी प्रमुख प्रवृत्ति रही है कि सभी कवि इससे प्रभावित हुए और इसके नाम पर ही इस युग को छायावादी युग कहा जाने लगा।

छायावाद क्या है?
छायावाद के स्वरूप को समझने के लिए उस पृष्ठभूमि को समझ लेना आवश्यक है,जिसने उसे जन्म दिया। साहित्य के क्षेत्र में प्राय: एक नियम देखा जाता है कि पूर्ववर्ती युग के अभावों को दूर करने के लिए परवर्ती युग का जन्म होता है। छायावाद के मूल में भी यही नियम काम कर रहा है। इससे पूर्व द्विवेदी युग में हिंदी कविता कोरी उपदेश मात्र बन गई थी। उसमें समाज सुधार की चर्चा व्यापक रूप से की जाती थी और कुछ आख्यानों का वर्णन किया जाता था। उपदेशात्मकता और नैतिकता की प्रधानता के कारण कविता में नीरसता आ गई। कवि का हृदय उस निरसता से ऊब गया और कविता में सरसता लाने के लिए वह छटपटा उठा। इसके लिए उसने प्रकृति को माध्यम बनाया। प्रकृति के माध्यम से जब मानव-भावनाओं का चित्रण होने लगा,तभी छायावाद का जन्म हुआ और कविता इतिवृत्तात्मकता को छोड़कर कल्पना लोक में विचरण करने लगी।

छायावाद की परिभाषा
छायावाद अपने युग की अत्यंत व्यापक प्रवृत्ति रही है। फिर भी यह देख कर आश्चर्य होता है कि उसकी परिभाषा के संबंध में विचारकों और समालोचकों में एकमत नहीं हो सका। विभिन्न विद्वानों ने छायावाद की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं की हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने छायावाद को स्पष्ट करते हुए लिखा है -"छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थों में समझना चाहिए। एक तो रहस्यवाद के अर्थ में,जहां उसका संबंध काव्य-वस्तु से होता है अर्थात् जहां कवि उस अनंत और अज्ञात प्रियतम को को आलम्बन बनाकर अत्यंत चित्रमयी भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता है। छायावाद शब्द का दूसरा प्रयोग काव्य शैली या पद्धति-विशेष के व्यापक अर्थ में है।... छायावाद एक शैली विशेष है,जो लाक्षणिक प्रयोगों,अप्रस्तुत   विधानों और अमूर्त उपमानों को लेकर चलती है।" दूसरे अर्थ में उन्होंने छायावाद को चित्र-भाषा-शैली कहा है।

महादेवी वर्मा ने छायावाद का मूल सर्वात्मवाद दर्शन में माना है। उन्होंने लिखा है कि "छायावाद का कवि धर्म के अध्यात्म से अधिक दर्शन के ब्रह्म का ऋणी है, जो मूर्त और अमूर्त विश्व को  मिलाकर पूर्णता पाता है। ... अन्यत्र वे लिखती हैं कि छायावाद प्रकृति के बीच जीवन का उद्-गीथ है।

डॉ. राम कुमार वर्मा ने छायावाद और रहस्यवाद में कोई अंतर नहीं माना है। छायावाद के विषय में उनके शब्द हैं- "आत्मा और परमात्मा का गुप्त वाग्विलास रहस्यवाद है और वही छायावाद है। एक अन्य स्थल पर वे लिखते हैं - "छायावाद या रहस्यवाद जीवात्मा की उस अंतर्निहित प्रवृत्ति का प्रकाशन है जिसमें वह दिव्य और अलौकिक सत्ता से अपना शांत और निश्चल संबंध जोड़ना चाहती है और यह संबंध इतना बढ़ जाता है कि दोनों में कुछ अंतर ही नहीं रह जाता है।...परमात्मा की छाया आत्मा पर पड़ने लगती है और आत्मा की छाया परमात्मा पर। यही छायावाद है।"

आचार्य नंददुलारे वाजपेयी का मंतव्य है -"मानव अथवा प्रकृति के सूक्ष्म किंतु व्यक्त सौंदर्य में आध्यात्मिक छाया का भान मेरे विचार से छायावाद की एक सर्वमान्य व्याख्या हो सकती है। छायावाद की व्यक्तिगत विशेषता दो रूपों में दीख पड़ती है- एक सूक्ष्म और काल्पनिक अनुभूति के प्रकाश में और दूसरी लाक्षणिक और प्रतीकात्मक शब्दों के प्रयोग में। और इस आधार पर तो यह कहा ही जा सकता है कि छायावाद आधुनिक हिंदी-कविता की वह शैली है जिसमें सूक्ष्म और काल्पनिक सहानुभूति को लाक्षणिक एवं प्रतीकात्मक ढ़ंग पर प्रकाशित करते हैं।"

शांतिप्रिय द्विवेदी ने छायावाद और रहस्यवाद में गहरा संबंध स्थापित करते हुए कहा है-"जिस प्रकार मैटर ऑफ़ फैक्ट(इतिवृत्तात्मक) के आगे की चीज छायावाद है उसी प्रकार छायावाद के आगे की चीज रहस्यवाद है।"

गंगाप्रसाद पांडेय ने छायावाद पर इस प्रकार प्रकाश डाला है-"छायावाद नाम से ही उसकी छायात्मकता स्पष्ट है। विश्व की किसी वस्तु में एक अज्ञात सप्राण छाया की झांकी पाना अथवा उसका आरोप करना ही छायावाद है। ...जिस प्रकार छाया स्थूल वस्तुवाद के आगे की चीज है, उसी प्रकार रहस्यवाद छायावाद के आगे की चीज है।"

जयशंकर प्रसाद ने छायावाद को अपने ढ़ग से परिभाषित करते हुए कहा है - "कविता के क्षेत्र में पौराणिक युग की किसी घटना अथवा देश-विदेश की सुंदरी के बाह्य वर्णन से भिन्न जब वेदना के आधार पर स्वानुभूतिमयी अभिव्यक्ति होने लगी तब हिंदी में उसे छायावाद के नाम से अभिहित किया गया।"

डॉ. देवराज छायावाद को आधुनिक पौराणिक धार्मिक चेतना के विरुद्ध आधुनिक लौकिक चेतना का विद्रोह स्वीकार करते हैं।

डॉ. नगेन्द्र छायावाद को स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह मानते हैं और साथ ही यह भी स्वीकार करते हैं कि "छायावाद एक विशेष प्रकार की भाव-पद्धति है। जीवन के प्रति एक विशेष प्रकार का भावात्मक दृष्टिकोण है। उन्होंने इसकी मूल प्रवृत्ति के विषय में लिखा है कि वास्तव पर अंतर्मुखी दृष्टि डालते हुए,उसको वायवी अथवा अतीन्द्रीय रूप देने की प्रवृत्ति ही मूल वृत्ति है। उनके विचार से, युग की उदबुद्ध चेतना ने बाह्य अभिव्यक्ति से निराश होकर जो आत्मबद्ध अंतर्मुखी साधना आरंभ की वह काव्य में छायावाद के रूप में अभिव्यक्त हुई। वे छायावाद को अतृप्त वासना और मानसिक कुंठाओं का परिणाम स्वीकार करते हैं।

डॉ. नामवर सिंह ने अपनी पुस्तक "छायावाद" में विश्वसनीय तौर पर दिखाया कि छायावाद वस्तुत: कई काव्य प्रवृत्तियों का सामूहिक नाम है और वह उस "राष्ट्रीय जागरण की काव्यात्मक अभिव्यक्ति" है जो एक ओर पुरानी रुढ़ियों से मुक्ति पाना चाहता था और दूसरी ओर विदेशी पराधीनता से।

उपर्युक्त परिभाषाओं से छायावाद की अनेक परिभाषाएं स्पष्ट होती हैं, किंतु एक सर्वसम्मत परिभाषा नहीं बन सकी। उपरिलिखित परिभाषाओं से यह भी व्यक्त होता है कि छायावाद स्वच्छंदतावाद (रोमांटिसिज्म) के काफी समीप है।

उपर्युक्त परिभाषाओ को समन्वित करते हुए हम कह सकते हैं कि "संसार के प्रत्येक पदार्थ में आत्मा के दर्शन करके तथा प्रत्येक प्राण में एक ही आत्मा की अनुभूति करके इस दर्शन और अनुभूति को लाक्षणिक और प्रतीक शैली द्वारा व्यक्त करना ही छायावाद है।"

आधुनिक काल के छायावाद का निर्माण भारतीय और यूरोपिय भावनाओं के मेल से हुआ है, क्योंकि उसमें एक ओर तो सर्वत्र एक ही आत्मा के दर्शन की भारतीय भावना है और दूसरी ओर उस बाहरी स्थूल जगत के प्रति विद्रोह है, जो पश्चिमी विज्ञान की प्रगति के कारण अशांत एवं दु:खी है। 

टिप्पणियाँ

  1. bahut sundar jaankari bhari post. badalte vaqt ka badlaav bhi dikh raha hai adhunik yug ke chhayawaad mein.

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  2. छायावाद को मैं काव्यशास्त्र के हर वाद का जनक मानता हूँ.. क्योंकि इसने सबसे अधिक प्रभावित किया है मुझे... कविता की लोकप्रियता में भी इसी का हाथ रहा है.. आपका यह आलेख एक संतुलित, ज्ञानवर्धक और व्यवस्थित है..

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  3. छाया वाद - शाब्दिक तौर पर कहा जा सकता है कि उपमाओं के सहारे बात कही जा रही है. यह मेरी मानना रहा है. लेकिन इसमें रोमांटिसिज्म के - काफी - करीब होने वाली बात समझ नहीं आई. हां मेरे अपने कहकर देव को संबोधित बहुत से काव्य ग्रंथ या खखंड़ों को छायावादी कह सकते हैं. या आप छायावाद के उपमाओं की लुकाछिपि को रोमांटिसिज्म कहना चाह रहे हैं. "परमात्मा की छाया आत्मा पर पड़ने लगती है और आत्मा की छाया परमात्मा पर। यही छायावाद है।" - वाली व्याख्या सटीक लगी.

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  4. काफी अच्छा जानकारी दिया गया है धन्यवाद

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  5. बहुत अच्छी जानकारी दी है

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  6. बहुत अच्छा से समझायागया है।

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  7. छायावाद को छोकरा वाद किसने कहा....??

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  8. Alochakon ke dwara jo paribhasa di gyi h kya hume wo pustak ka naam bata skte h mujhe uska jarurat h help me call krke v bata skte h 8340509289

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  9. छायावाद वह रचना है जिसमे कवि कल्पना के आधार पर अदृश्य लौकिक और अलौकिक शक्ति का आलम्बन करता है ।

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  10. कुछ और अच्छा लिखें इलाहाबाद विश्वविद्यालय

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  11. Pratrti ko madhyam bnakr manav ki Atma ki jagrit krna chayavad kehlata h

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  12. My name is Himanshu. I read In class 11. According to me this definition is the best

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  13. Kaya
    Rachana
    Gdaya
    Paday
    Kya difference hain bhut confusio hota hai

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  14. Bahut achcha post hai=ye hamari jankari ke liye bhi bahut achcha hai.kyoki mai ek hindi .honours ..students hu

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  15. Aapko bahut bahut dhanyvad chhayavad ke bare mein batane ke liye aur kam hi Shabd me jankari dene ke liye

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  16. धन्यवाद अच्छी जानकारी।
    अधिक जानकारी के लिये https://hindigrema.blogspot.com/2020/05/history-of-hindi-literature-modern-chayavad.html
    कक्षा 12,बी.ए, एम. ए, नेट,1st ग्रेड व साहित्य व भाषा में रुचि रखने वाले अवश्य पढ़ें व शेयर करें

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  17. Hindi sahitya m Prakriti ke madhayam se manav-bhawnao ko bhin-bhin rupon m bayakt krna hi chhayawad kahlata h

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  18. Chayawad sthul ke prati suchm ka vidhro kaha tak yuktisngat hai

    Pls koi utter dijiye

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