प्रगतिवाद
जिस प्रकार द्विवेदी युग की इतिवृत्तात्मकता,उपदेशात्मकता और स्थूलता के प्रति विद्रोह में छायावाद का जन्म हुआ,उसी प्रकार छायावाद की सूक्ष्मता,कल्पनात्मकता, व्यक्तिवादिता और समाज-विमुखता की प्रतिक्रिया में एक नई साहित्यिक काव्य धारा का जन्म हुआ। इस धारा ने कविता को कल्पना-लोक से निकाल कर जीवन के वास्तविक धरातल पर खड़ा करने का प्रयत्न किया। जीवन का यथार्थ और वस्तुवादी दृष्टिकोण इस कविता का आधार बना। मनुष्य की वास्तविक समस्याओं का चित्रण इस काव्य-धारा का विषय बना। यह धारा साहित्य में 'प्रगतिवाद' के नाम से प्रतिष्ठित हुई।
'प्रगति' का सामान्य अर्थ है- 'आगे बढ़ना' और 'वाद' का अर्थ है-'सिद्धांत'। इस प्रकार प्रगतिवाद का सामान्य अर्थ है 'आगे बढ़ने का सिद्धांत'। लेकिन प्रगतिवाद में इस आगे बढ़ने का एक विशेष ढंग है,विशेष दिशा है जो उसे विशिष्ट परिभाषा देता है। इस अर्थ में 'प्राचीन से नवीन की ओर', 'आदर्श से यथार्थ की ओर','पूंजीवाद से समाजवाद' की ओर,'रूढ़ियों से स्वच्छंद जीवन की ओर','उच्चवर्ग से निम्नवर्ग की ओर' तथा 'शांति से क्रांति की ओर' बढ़ना ही प्रगतिवाद है।
परंतु हिंदी साहित्य में प्रगतिवाद विशेष अर्थ में रूढ़ हो चुका है। जिसके अनुसार प्रगतिवाद को मार्क्सवाद का साहित्यिक रूप कहा जाता है।जो विचारधारा राजनीति में साम्यवाद है,दर्शन में द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद है,वही साहित्य में प्रगतिवाद है। इसी प्रगतिवाद को 'समाजवादी यथार्थवाद'(सोशेलिस्ट रियलिज्म) भी कहते हैं।
उन दिनों यूरोप में मार्क्सवाद का प्रभाव निरंतर बढ़ रहा था। 1919 में रूस में क्रांति हुई। जारशाही का अंत हुआ और मार्क्सवाद से प्रेरित बोल्शेविक पार्टी की सत्ता स्थापित हुई और साम्यवादी विचारधारा ने जोर पकड़ा। जिसने साहित्य में भी एक नवीन दृष्टिकोण को जन्म दिया। लोगों को यह समानतावादी/समतावादी विचार खूब जंच रहा था।
सन् 1930 में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी का जन्म हुआ और 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का। धीरे-धीरे राजनीति में वामपंथी शक्तियों का जोर बढ़ा। कांग्रेस में गांधी के अहिंसात्मक सिद्धांत को न मानने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही थी।मजदूरों के आंदोलन हो रहे थे। इस प्रकार तत्कालीन परिस्थितियां वैचारिक उग्रता और समाजोन्मुखता को बढ़ावा दे रही थी। साहित्यकार समाज की ज्वलंत समस्याओं से जूझ रहे थे।
सन् 1935 में ई.एम.फार्स्टर के सभापतित्व में 'प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोशियन' नामक अंतरराष्ट्रीय संस्था का पहला अधिवेशन पेरिस में हुआ।सन् 1936 में डॉ.मुल्कराज आनंद और सज्जाद जहीर के प्रयत्नों से इस संस्था की एक शाखा भारत में खुली और प्रेमचंद की अध्यक्षता में लखनऊ में उसका प्रथम अधिवेशन हुआ और तभी से 'प्रोग्रेसिव लिटरेचर' के लिए हिंदी में 'प्रगतिशील साहित्य' का प्रचलन शुरु हुआ। कालांतर में यही प्रगतिवाद हो गया। प्रेमचंद,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,जोष इलाहाबादी जैसे अग्रणी लेखकों और कवियों ने इस आंदोलन का स्वागत किया। पंत,निराला.दिनकर,नवीन ने इसमें सक्रिय योगदान दिया।
अर्थ की दृष्टि से प्रगतिवाद के दो अर्थ हैं- एक व्यापक और दूसरा सीमित या सांप्रदायिक। प्रगतिशील व्यापक और उदार अर्थ में प्रयुक्त होता है। जिसके अनुसार आदिकाल से लेकर अब तक समस्त साहित्य परम्परा प्रगतिशील है। लेकिन सीमित अर्थ में यह साहित्य प्रचारात्मक है जो मार्क्सवाद का साहित्यिक मोर्चा है जिसमें पिछले सम्पूर्ण साहित्य को सामंतवादी और प्रतिक्रियावादी कह कर नकार दिया गया । छायावाद ने जहां काव्य में ही स्थान बनाया वहां प्रगतिवाद ने साहित्य की अन्य विधाओं यथा उपन्यास,कहानी,आलोचना आदि के क्षेत्र में भी जगह बनाई।
काव्य में अपने रूढ़ अर्थ में प्रगतिवाद 1937 से 1943 तक शिखर पर रहा उसके बाद काव्य ने प्रयोगवाद,नई कविता जैसी नई धाराओं को विकसित किया।
प्रगतिवाद की परिभाषा बहुत आसान शब्दों में समझाने के लिए आपका आभार.. वास्तव में इस परिभाषा से लगा कि उर्दू साहित्यकारों में प्रगतिवाद बहुत ही मुखर होकर उभरा है... साहिर लुधियानवी और कैफी आज़मी दो ऐसे शायर रहे हैं जिनकी रचनाओं में छायावाद की कोमलता और प्रगतिवाद की आग एक साथ देखी जा सकती है..! मेरे विचार में जब अगली कड़ियों में आप हिन्दी के साहित्यकारों की चर्चा करेंगे तो इनके योगदान को भी स्थान अवश्य देंगे!!
जवाब देंहटाएंपुनः धन्यवाद मनोज जी, इस असाहित्यिक मित्र की अव्यवस्थित जानकारियों को व्यवस्थित रूप प्रदान करने के लिए!!
सलिल जी !!!
जवाब देंहटाएंअगर आप असाहित्यिक हैं, तो फिर मैं जिन कवियों की चर्चा कर रहा हूं वे क्या हैं?
नहीं, आप जो लिख रहें हैं वह साहित्य में वृद्धि कर रहा है।
प्रगतिवाद के विषय में प्रस्तुत जानकारी अच्छी लगी । आशा है भविष्य में भी आप साहित्य संबंधी ऐसे विषयों को प्राथमिकता देंगे । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंpragatiwad ne hindi sahity ko ek nai disha di.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सचिन का सेंचुरी नहीं - सलिल का हाफ-सेंचुरी : ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी से निकल रहा 'बूँद-बूँद इतिहास' मेरी दृष्टि से सुगम है. सलिल जी से सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति......
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
This article is very useful for my exams...thank u sir
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!!
हटाएंMaine pucha hai pragat vadi ka mukhya Aadhar kya hai
जवाब देंहटाएंKripya karke iska answer h
jald se jald de
आप के प्रश्न का उत्तर यहां है-https://hindigrema.blogspot.com/2020/05/history-of-hindi-literature-Progressivism.html
हटाएंShi likha
जवाब देंहटाएंप्रगतिवाद के बारे में ओर ज्यादा जानने के लिये पढें https://hindigrema.blogspot.com/2020/05/history-of-hindi-literature-Progressivism.html
जवाब देंहटाएंNirala bad aur chhayavad mein antar
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