रीतिकालीन रीतिमुक्त भक्ति काव्य

पूर्वमध्य काल (भक्ति काल) में भक्ति की जो निर्गुण,सूफी,राम-काव्य और कृष्ण काव्य की धाराएँ प्रवाहित हुई थी । वे अविरल रूप से रीतिकाल में भी चलती रही । निर्गुण कवियों में यारी साहब (बाबरी संप्रदाय के प्रसिद्ध संत),दरिया साहब, जगजीवन दास, पलटू साहब, चरनदास, शिवनारायण दास और तुलसी साहब (हाथरस वाले) के नाम उल्लेखनीय हैं । सूफी या प्रेमाख्यान कवियों में कासिमशाह, नूरमुहम्मद तथा शेख निसार के नाम उल्लेखनीय हैं । बोधा और चतुर्भुजदास ने भी इस काव्य प्रवृत्ति की रचनाएँ इस काल में की हैं । राम काव्य परम्परा में गुरु गोविन्द सिंह ,जानकी रसिक शरण(अवध सागर), जनकराय, किशोरी शरण(20 राम काव्य), भगवंत राय खिची(रामायण), विश्वनाथ सिंह(6 राम काव्य) आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । कृष्ण काव्य में भक्ति की पवित्र धारा पर श्रृंगार हावी हो गया । फलत: राधा-कृष्ण (हरि और राधिका) की आड़ में मानवी श्रृंगार का प्रचलन हो गया ।प्रबंधात्मक कृष्ण-भक्ति काव्य रचनाकारों में ब्रजवासीदास तथा मंचित कवि उल्लेखनीय हैं । मुक्तक कृष्ण-काव्य की बहुलता रही ,ऐसे रचनाकारों में  रूपरसिकदेव, नागरीदास,अलबेली, चाचा हितवृन्दावन दास आदि का नाम लिया जा सकता है । इस काल के अन्य भक्त कवियों में बख्सी हंसराज, संत तुकाराम, समर्थ रामदास का नाम लिया जा सकता है ।

गुरु गोविंद सिंह रचित रचनाएँ इस प्रकार हैं :- 
1. विचित्र नाटक 2. सुनीतिप्रकाश 3. प्रेम सुमार्ग 4. बुद्धिसागर 5. चंडीचरित्र 6. चौबीस अवतार 7. अकाल स्तुति 8.ज्ञानबोध 9.शब्दहजारे 10.तेती सवैये 11. शासन नाम माला 12. गोविंद रामायण 13.सर्वलोह प्रकाश
इनकी रचनाओं की कुल संख्या 16 कही गई है, जो दशम ग्रंथ में संकलित हैं । चंडी चरित इनकी विशिष्ट साहित्यिक रचना है । 

यूँ रीतिकाल का कोई भी कवि भक्ति-भावना से हीन नहीं है - हो भी नहीं सकता था; क्योंकि भक्ति उसके लिए एक मनोवैज्ञानिक आवश्यकता थी । इसलिए रीतिकाल के सामाजिक जीवन और काव्य में भक्ति का आभास अनिवार्यत: वर्तमान है और नायक-नायिका के लिए बार-बार हरि और राधिका शब्दों का प्रयोग किया गया है ।

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