रीतिकालीन रीतिमुक्त नीतिकाव्य
रीतिकाल में रीतिमुक्त नीति काव्य भी रचा जाता रहा । नीतिकाव्य इस युग की एक प्रमुख प्रवृत्ति रही । वृन्द,गिरधर कविराय, दीनदयाल गिरि, लाल और सूदन जैसे कवियों ने विपुल नीति साहित्य की रचना की । वृन्द ने सरल,सरस भाषा में कलापूर्ण सूक्तियाँ कही हैं । गिरधर कविराय ने व्यवहार और नीति से संबद्ध कुंडलियाँ लिखी । दीनदयाल गिरि ने स्वच्छ, सुव्यवस्थित और परिष्कृत भाषा में जो अन्योक्तियाँ कही,वे नीतिसाहित्य में मूर्धन्य स्थान रखती हैं । नीतिकाव्य के इन कवियों की रचनाएँ इस प्रकार हैं ::-
01. वृंद : 1.वृंद सतसई 2.भाव पंचाशिका 3.यमक सतसई 4.श्रृंगार शिक्षा 5.चोर पंचाशिका 6.पवन पचीसी 7.सत्यस्वरूप 8.भारतकथा 9.समेतशिखर
02. गिरधर कविराय : सांई (कुंडलियाँ)
03. लाल : 1.छत्र प्रकाश 2.विष्णु विलास
04. सूदन :1.सुजान चरित
05. दिनदयाल गिरि :
06. बैताल :
07. सम्मन :
दीनदयाल गिरि की अन्योक्तियों के कुछ उदाहरण :
हे पांडे यह बात को,को समुझै या ठांव ।
इतै न कोऊ हैं सुधी, यह ग्वारन गांव ॥
यह ग्वारन को गांव, नांव नहिं सूधे बोले ।
बसै पसुन के संग अंग ऐंडे करि डौलले ॥
बरनै दीनदयाल छाछ भरि लीजै भांडे ।
कहा कहौं इतिहास, सुनै को इत है पांडे ॥
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी का इंतजार है।