रीतिमुक्त कवि और उनकी रचनाएँ
रीतिकाल में रीतिमुक्त या स्वछंद काव्य भी रचा जा रहा था । इस प्रकार का काव्य भाव-प्रधान था । इसमें शारीरिक वासना की गंध नहीं , वरन हृदय की अतृप्त पुकार है । राधा और कृष्ण की लीलाओं के गान के बहाने नहीं, बल्कि सीधे-सादे रूप में वैयक्तिक रूप की स्पष्ट अभिव्यक्ति है । भावात्मकता, वक्रता,लाक्षणिकता, भावों की वैयक्तिकता, मार्मिकता,स्वच्छंदता आदि इस वर्ग के कवियों की विशेषताएँ हैं । इस वर्ग के कवियों में घनानंद, आलम, बोधा और ठाकुर के नाम प्रमुख हैं । इनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं :-
1. घनानंद : प्रमुख रचनाएँ : 1.सुजानसागर 2. विरहलीला 3.कोकसार 4. रसकेलिबल्ली 5. कृपाकांड ।
2. आलम : 1. आलम केलि, 2.सुदामा चरित 3.श्यामस्नेही 4.माधवानलकामकंदला ।
3. बोधा : 1.विरहबारीश 2.इश्कनामा ।
4. ठाकुर : 1.ठाकुर ठसक ।
रीतिकाल ही नहीं शायद हर काल में हर तरह की रचनाएँ हुई हैं .. हाँ उनका बाहुल्य या मात्रात्मक स्वरूप गौण अवश्य रहे.
जवाब देंहटाएंKavya hriday ki umang hai aur ise baad banakr rokaa nahin jaa saktaa. Haan yadi kavy apni bhawnawon ko dabakr yug abhivyakti ki sangati kare to baat alag hai lekin usme kahin n kahin kuchh kasak jaroor rh jaata hai. Kuchh maryaada nibhate hain kuchha todte , kuchh jodte hain..... aur kuchhh beparwaah chalte hain koi saath ya na de....Yah vritti pratyek yug me rahi hai....
जवाब देंहटाएंEk achchhi post...
Ritimult kal kon se kal ko kehtae hai,,??
जवाब देंहटाएंरीत मुक्त काल नहीं है रीतमुक्त एक छंद रचना का प्रकार hai
हटाएंVknckrnbc
जवाब देंहटाएंNnl
Djxgvh inconvenience conflict
हटाएंMatiram ritikal ki kis kavydhara ke kavi h.. please answer mi..
जवाब देंहटाएंरीतिबद्ध काव्य
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