भक्ति-काल

हिंदी साहित्य में सम्वत १३७५ से सम्वत १७०० तक (14वीं शती से लेकर 16वीं शती तक) का समय भक्ति काल के नाम से जाना जाता है । तीन सौ वर्षों की यह लम्बी धारा मुख्त: दो भागों में प्रवाहित हुई :-

  1. निर्गुण भक्ति धारा
  2. सगुण भक्ति धारा
समय के साथ ये दोनों धाराएँ आगे दो-दो उपधाराओं में बँट गई ।
निर्गुण भक्ति धारा निम्न दो शाखाओं में बँट गई :-

  1. ज्ञानमार्गी शाखा
  2. प्रेममार्गी शाखा
इसी प्रकार सगुण भक्ति धारा निम्न दो उप शाखाओं में बँट गई :-
  1. कृष्ण भक्ति शाखा
  2. रामभक्ति शाखा
ज्ञानमार्गी शाखा : इस शाखा के प्रवर्तक और मुख्य कवि कबीरदास हैं । इस शाखा ने समाज-सुधार पर विशेष बल दिया । इसलिए इस शाखा के साहित्य को संत-साहित्य भी कहते हैं ।

प्रेममार्गी शाखा : इस शाखा पर सूफीमत का विशेष प्रभाव है । इसलिए इस शाखा के साहित्य को सूफी साहित्य भी कहा जाता है । इस शाखा के प्रवर्तक और मुख्य कवि मलिक मुहम्मद जायसी हैं ।

कृष्णभक्ति शाखा : इस शाखा के कवियों ने भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का मनोरंजक चित्रण किया है । इस धारा के मुख्य कवि हैं : सूरदास ।

रामभाक्ति शाखा : इस शाखा के कवियों ने राम के शील, शक्ति और सौंदर्य युक्त रूप का चित्रण किया है । इस शाखा के प्रतिनिधि कवि गोस्वामी तुलसी दास हैं ।

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