रीतिकाल की परिस्थितियाँ
विदित है कि हिंदी साहित्य में सम्वत 1700 से 1900 तक का समय रीतिकाल से अभिहीत है । यह काल समृद्धि और विलासिता का काल है । श्रृंगार की अदम्य लिप्सा इस युग के जीवन और साहित्य, दोनों में स्पष्ट प्रतिबिंबित है । कला वासना -पूर्ति का साधन बनी और नारी उसका आलम्बन । स्पष्टत: प्रेम क्रीड़ाओं और नायक-नायिका -भेद का जो वैचित्र्यपूर्ण चित्रण इस काल की कविता में मिलता है, वह तत्कालीन परिस्थितियों का प्रतिबिंब है ।
राजनीतिक परिस्थितियाँ : राजनीतिक दृष्टि से यह दो सौ साल का समय मुगल-काल में शाहजहाँ से लेकर लार्ड हार्डिंग तक का समय है, जिसमें शाहजहाँ की उत्कृष्ट कला-प्रियता का युग भी है और औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता, नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली के कत्लेआम और नृशंसता की घटनाएँ भी इसी काल में घटित हुई । अंग्रेजों की कूटनीतिक चालों और कुचालों का जाल भी इसी युग में पनपा । छोटे-छोटे राज्यों-रजवाड़ों, सरदार-सामंतों का इस विपत्ति से अंग्रेज शासकों की अधीनता स्वीकार कर आँख मूँदकर दरबारी विलासिता में मस्त जीवन व्यतीत करने की कहानी भी इसी काल की कहानी है ।
इस काल के कवि इन विलासी रजवाड़ों के दरबारों में रहकर आश्रयदाताओं को विलासितामय सुरा के प्याले पिला रहे थे । राजमहलों में नाच-रंग तथा मदिरापान का ही बोलबोला था । सुरा,सुराही और सुंदरी के राज में विलासी जीवन से उत्पन्न कविता श्रृंगारिक कविता बनती गई ।
सामाजिक परिस्थितियाँ : सामाजिक दृष्टि से यह काल घोर अध:पतन का युग रहा । यह सामंतवादी युग था , जो सामंतवाद के अपने सभी दोषों से युक्त था । नीचे वालों को ये मात्र अपनी संपत्ति मानते थे, जिनका अस्तित्व केवल उनके लिए, उनकी सेवा के लिए ही था । नारी को अपनी सम्पत्ति मानकर उसका भोग, इनके जीवन का मूल मंत्र हो गया था । सुरा और सुंदरी राजा और प्रजा के उपास्य विषय हो गए थे । नैतिक मूल्यों का पूर्णत: अभाव था । चिकित्सा, शिक्षा और संपत्ति-रक्षा का कोई प्रबंध न था । धर्म-स्थान भ्रष्टाचार और पापाचार के केंद्र बन गए थे । हिंदू अपने आराध्य राम-कृष्ण का अतिशय श्रृंगार ही नहीं करते थे, बल्कि उनकी लीलाओं में अपने विलासी-जीवन की संगति खोजने लगे थे । रुढ़िवादिता के अत्यधिक बढ़ जाने से मुसलमान जीवन की वास्तविकता से दूर पड़ गए । कर्म और आचार का स्थान अंधविश्वास ने ले लिया ।
साहित्य और कला : साहित्य और कला की दृष्टि से यह युग काफी समृद्ध रहा । ललित कलाओं में चित्रकला, स्थापत्य और संगीत-कला का पोषण राजमहलों में हुआ । संगीत-शास्त्र पर कुछ प्रामाणिक ग्रंथ लिखे गए । अलंकार-प्रिय विलासी राजा और बादशाहों की अभिरुचि से अत्यधिक प्रभावित होने के कारण तथा कल्पना-परक वैविध्य की न्यूनता के कारण कलाएँ कला की सीमाओं से दूर पड़ गई ।
रिति काल की अच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंआभार
acchhi jankari di. lekin aurangjeb ke samay me to kabeer bhi the aur us samay ko aadikaal bhi mana jata hai aur vo samay 1500 samawat ka tha to fir aurangjeb ritikal me kaise mana jata hai ?
जवाब देंहटाएंकबीर का समय सन् 1398-1518 तक माना गया है
हटाएंreetikaal ka samay 1700-1900 tak ka He...
हटाएंHan ji
हटाएं@ अनामिका जी ...
जवाब देंहटाएंभक्तिकाल का समय सम्वत 1400 से 1700 तक है । रीतिकाल सम्वत 1700 से 1900 है । भक्त कबीर आदिकाल में नहीं बल्कि भक्तिकाल में हुए । उनका जीवन काल सम्वत 1455 से 1575 तक है । जो काफी लम्बा समय है । औरंगजेब रीतिकाल के ही बादशाह थे । भक्तिकाल में अकबर और शाहजहां का अंतिम समय रहा ।
bhakti kal ka samay 1400se nahi 1375 se hai 1375se1700 or ritikal ka 1700se1900tak
हटाएंkya bata sakte hai 1400 kese aaye
हटाएंनिसंदेह ।
जवाब देंहटाएंयह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
धन्यवाद ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com
जानकारियों का बहुत अच्छा संग्रह है... शुक्रिया इन्हें हम तक पहुचने के लिए...
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति, लोहरी एवं पोंगल की हार्दिक शुभकामनाएं...
सर साहित्य और कला की पूरी जानकारी नही मिल पाई है अगर आपके पास और विस्तार में जानकारी है तो बताने का कष्ट करे
जवाब देंहटाएंआपका प्रशंसक
अनुराग फगेडिया
मे कवि अनमौल तिवारी "कान्हा" आपके इस विवेचन का स्वागत करता हुँ
जवाब देंहटाएंअतिउत्तम
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंनाइस
हटाएंAmazing good job thanks for the information it helps alot
जवाब देंहटाएंAthasik paristikik show Kara
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंBahut hi beautiful sir hindi me besic tq
जवाब देंहटाएंBahut hi sundar hai beautiful sir
जवाब देंहटाएंThanks
जवाब देंहटाएंMere note me apke notes ka ahem hisa he
Iske bina mera notes complete nehi hota 👌👌
रीति काल तथा भक्ति काल इन दोनों के बारे में पढ़कर हमें हमारे पूर्वजों का धर्म के प्रति तथा अपने समाज के प्रति पनप रहे कुरीतियों तथा समाज की तरक्की का बहुत ज्ञान मिलता है और आपकी या रचना तथा आपके या बुद्धि बहुत कुशल है आपका ह्रदय से आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर
जवाब देंहटाएंthanks sir
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