आदिकाल की सिद्ध काव्य धारा के कवि और उनकी रचनाएँ
सिद्ध साहित्य : सिद्धों की संख्या ८४ मानी गई है । अधिकांश सिद्धों के नाम के पीछे पा जुड़ा हुआ है । इनकी भाषा मगही है । भक्ति काल की कई प्रवृत्तियों का जन्म सिद्ध साहित्य में ही हुआ है । रुढ़ियों का विरोध और अक्खड़पन सिद्धों की ही देन है । योग साधना के क्षेत्र में भी इनका प्रभाव है । कृष्ण भक्ति की मूल प्रवृत्तियों का जन्म भी यहीं से दिखाई देता है । आइए आज प्रमुख सिद्ध कवियों की रचनाओं को सूचीबद्ध करते हैं :-
- सरहपा : दोहाकोश, उपदेश गीति, द्वादशोपदेश, डाकिनीगुहयावज्रगीति, चर्यागीति, चित्तकोष अजव्रज गीति । इनके कुल ३२ ग्रंथ हैं ।
- शबरपा : चर्यापद, सितकुरु, वज्रयोगिनी, आराधन-विधि ।
- लुइपा : अभिसमयविभगं, तत्वस्वभाव दोहाकोष, बुद्धोदय, भगवदअमभिसय, लुइपा-गीतिका ।
- डोभ्भिपा : अक्षरद्विकोपदेश, डोंबि गीतिका, नाड़ीविंदुद्वारियोगचर्या । इनके कुल २१ ग्रंथ हैं ।
- कण्हपा : योगरत्नमाला, असबधदृष्टि, वज्रगीति, दोहाकोष, बसंत तिलक, कान्हपाद गीतिका ।
- दारिकपा : तथतादृष्टि, सप्तमसिद्धांत, ओड्डियान विनिर्गत-महागयह्यातत्वोपदेश ।
- शांतिपा : सुख दुख द्वयपरित्याग ।
- तंतिपा : चतुर्योगभावना ।
- विरुपा : अमृतसिद्ध, विरुपगीतिका, मार्गफलान्विताव वादक ।
- भुसुकपा : बोधिचर्यावतार, शिक्षा-समुच्चय ।
- वीणापा : वज्रडाकिनी निष्पन्नक्रम ।
- कुकुरिपा : तत्वसुखभावनासारियोगभवनोपदेश, स्रवपरिच्छेदन ।
- मीनपा : बाहयतरंबोधिचितबंधोपदेश ।
- महीपा : वायुतत्व, दोहा गीतिका ।
- कंबलपाद : असबध दृष्टि, कंबलगीतिका ।
- नारोपा : नाडपंडित गीतिका, वज्रगीति, ।
- गोरीपा : गोरखवाणी, पद-शिष्य दर्शन
- आदिनाथ : विमुक्त मर्जरीगीत, हुंकारचित बिंदु भावना क्रम ।
- तिलोपा : करुणा भावनाधिष्ठान, महा भद्रोपदेश ।
- चटिल
- धामपा
- डरीगुप्पा
- जयनदीपा
- ताड़कपा
- ककंणपा
- ढ़ेढ़णपा
- भद्रपा
- कमरीपा
- गुण्डरीपा
सरहपा के देाहे
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