आदिकाल की नाथ धारा के कवि और उनकी रचनाएँ
सिद्धों की योग-साधना नारी भोग पर आधारित थी । इसकी प्रतिक्रिया में नाथ-धारा का आविर्भाव माना जाता है । यह हठयोग पर आधारित मत है । आगे चलकर यह साधना रहस्यवाद के रूप में प्रतिफलित हुई । यह कहना गलत नहीं होगा कि नाथपंथ से ही भक्तिकाल के संतमत का विकास हुआ ।
इस धारा के प्रवर्त्तक गोरख नाथ हैं । नाथों की संख्या नौ होने के कारण ये नवनाथ कहलाए । इन नवनाथों की रचनाएँ निम्नानुसार हैं :-
इस धारा के प्रवर्त्तक गोरख नाथ हैं । नाथों की संख्या नौ होने के कारण ये नवनाथ कहलाए । इन नवनाथों की रचनाएँ निम्नानुसार हैं :-
- गोरखनाथ : पंचमासा, आत्मबोध, विराटपुराण, नरवैबोध, ज्ञानतिलक, सप्तवार, गोरखगणेश संवाद, सबदी, योगेश्वरी, साखी, गोरखसार, गोरखवाणी, पद शिष्या दर्शन (इनके १४ काव्यग्रंथ मिलते हैं ) । डॉ पीताम्बर बड़थ्वाल ने गोरखबानी नाम से इनकी रचनाओं का एक संकलन संपादित किया है ।
- मत्स्येन्द्र या मच्छन्द्रनाथ : कौलज्ञान निर्णय, कुलानंदज्ञान-कारिका, अकुल-वीरतंत्र ।
- जालंधर नाथ : विमुक्तमंजरी गीत, हुंकारचित बिंदु भावना क्रम ।
- चर्पटनाथ : चतुर्भवाभिवासन
- चौरंगीनाथ : प्राण संकली, वायुतत्वभावनोपदेश
- गोपीचंद : सबदी
- भर्तृनाथ (भरथरीनाथ) : वैराग्य शतक
- ज्वालेन्द्रनाथ : अप्राप्य
- गाहिणी नाथ : अप्राप्य
achchhi jaankari mili
जवाब देंहटाएंतथ्यपरक आलेख, काफी जानकारी प्रदान करता हुआ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर जानकारी दी आपने पर इस जानकारी को मुझे आगे बढाने के लिए ये ग्रन्थ कहीं से कबाड़ने पड़ेंगे नाथों के बारे में जानने की बहुत इच्छा रहती थी !~!
जवाब देंहटाएंइस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए आभार।
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भाई हम कवियों के लिये तो यह जानकारी अनिवार्य है । आपके इस ब्लॉग को मै बुकमार्क कर रहा हूँ साथ ही मेरे ब्लॉग पर कविता के रूप मे सुन्दर विश्लेषण प्रस्तुत करने के लिये भी धन्यवाद दे रहा हूँ । शरद कोकास
जवाब देंहटाएंधन्यावाद।
जवाब देंहटाएंThankyou
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