भक्ति-काल
हिंदी साहित्य में सम्वत १३७५ से सम्वत १७०० तक (14वीं शती से लेकर 16वीं शती तक) का समय भक्ति काल के नाम से जाना जाता है । तीन सौ वर्षों की यह लम्बी धारा मुख्त: दो भागों में प्रवाहित हुई :-
निर्गुण भक्ति धारा निम्न दो शाखाओं में बँट गई :-
प्रेममार्गी शाखा : इस शाखा पर सूफीमत का विशेष प्रभाव है । इसलिए इस शाखा के साहित्य को सूफी साहित्य भी कहा जाता है । इस शाखा के प्रवर्तक और मुख्य कवि मलिक मुहम्मद जायसी हैं ।
कृष्णभक्ति शाखा : इस शाखा के कवियों ने भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का मनोरंजक चित्रण किया है । इस धारा के मुख्य कवि हैं : सूरदास ।
रामभाक्ति शाखा : इस शाखा के कवियों ने राम के शील, शक्ति और सौंदर्य युक्त रूप का चित्रण किया है । इस शाखा के प्रतिनिधि कवि गोस्वामी तुलसी दास हैं ।
- निर्गुण भक्ति धारा
- सगुण भक्ति धारा
निर्गुण भक्ति धारा निम्न दो शाखाओं में बँट गई :-
- ज्ञानमार्गी शाखा
- प्रेममार्गी शाखा
- कृष्ण भक्ति शाखा
- रामभक्ति शाखा
प्रेममार्गी शाखा : इस शाखा पर सूफीमत का विशेष प्रभाव है । इसलिए इस शाखा के साहित्य को सूफी साहित्य भी कहा जाता है । इस शाखा के प्रवर्तक और मुख्य कवि मलिक मुहम्मद जायसी हैं ।
कृष्णभक्ति शाखा : इस शाखा के कवियों ने भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का मनोरंजक चित्रण किया है । इस धारा के मुख्य कवि हैं : सूरदास ।
रामभाक्ति शाखा : इस शाखा के कवियों ने राम के शील, शक्ति और सौंदर्य युक्त रूप का चित्रण किया है । इस शाखा के प्रतिनिधि कवि गोस्वामी तुलसी दास हैं ।
aapki ye jaankariya aham avam amulya hai ,ek baar aur kuchh note karne aaungi ,ati sundar
जवाब देंहटाएंHa pr bahot km btaya gya hai yha ..uski vishestayein aor important points bhi btane chahiye the.
हटाएंpad bhi to dalo na yaar
जवाब देंहटाएंभक्ति काल के किन्ही दो प्रवृत्तियों के नाम
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