ज्ञानाश्रयी निर्गुण काव्य की प्रवृत्तियाँ
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने निर्गुण संत काव्य धारा को निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा नाम दिया । आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी इसे निर्गुण भक्ति साहित्य कहते हैं । रामकुमार वर्मा केवल संत-काव्य नाम से संबोधित करते हैं । संत शब्द से आशय उस व्यक्ति से है, जिसने सत परम तत्व का साक्षात्कार कर लिया हो । साधारणत: ईश्चर-उन्मुख किसी भी सज्जन को संत कहते हैं, लेकिन वस्तुत: संत वही है जिसने परम सत्य का साक्षात्कार कर लिया और उस निराकार सत्य में सदैव तल्लीन रहता हो । स्पष्टत: संतों ने धर्म अथवा साधना की शास्त्रीय ढ़ंग से व्याख्या या परिभाषा नहीं की है । संत पहले संत थे बाद में कवि । उनके मुख से जो शब्द निकले वे सहज काव्य रूप में प्रकट हुए । आज की चर्चा हम इसी संत काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों (विशेषताओं) को लेकर कर रहें हैं :-
- निर्गुण ईश्वर : संतों की अनुभूति में ईश्वर निर्गुण, निराकार और विराट है । स्पष्टत: ईश्वर के सगुण रूप का खंडन होता है । कबीर के अनुसार :- दशरथ सुत तिहुँ लोक बखाना । राम नाम का मरम है आना ।। संतों का ईश्वर घट-घट व्यापी है, जिसके द्वार सभी वर्णों और जातियों के लिए खुले हैं । निर्गुण राम जपहु रे भाई ? अविगत की गति लिखी न जाई ।
- बहुदेववाद या अवतारवाद का विरोध :- संतों ने बहुदेववाद तथा अवतारवाद की धारणा का खंडन किया है । इनकी वाणी में एकेश्वरवाद का संदेश है : अक्षय पुरुष इक पेड़ है निरंजन वाकी डार । त्रिदेवा शाखा भये, पात भया संसार ।। वस्तुत: संतों का लक्ष्य सगुण और निर्गुण से परे स्व-सत्ता की अनुभुति है । फिर भी सगुण उपासकों की तरह उन्होंने अपने प्रियतम (परम सत्ता) को राम, कृष्ण, गोविन्द, केशव आदि नामों से पुकारा है ।
- सद्-गुरु का महत्व :- संत कवियों ने ब्रह्म की प्राप्ति के लिए सद्-गुरु को सर्वोच्च स्थान पर रखा है । राम की कृपा तभी संभव है, जब गुरु की कृपा होती है । कबीर गुरु को गोविंद से भी महत्वपूर्ण मानते हुए कहते हैं :- गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाँय । बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो बताय ।।
- माया से सावधान रहने का उपदेश : सभी संतों की वाणी में माया से सावधान रहने का उपदेश मिलता है । इन्होंने माया का अस्तित्व स्वीकार किया है । इनकी दृष्टि में माया के दो रूप हैं : एक सत्य माया, जो ईश्वर प्राप्ति में सहायक है; दूसरी मिथ्या-माया जो ईश्वर से विमुख रहती है । उनका कहना था - माया महाठगिनी हम जानी । कबीर माया के संबंध में कहते हैं : कबीर माया मोहिनी, मोहे जाँण-सुजांण । भागां ही छूटे नहीं, भरि-भरि मारै बाण ।।
- गृहस्थी धर्म में बाधक नहीं : प्राय: सभी संत पारिवारिक जीवन व्यतीत करते थे । वे आत्मशुद्धि और व्यक्तिगत साधना पर बल देते थे तथा शुद्ध मानव धर्म के प्रतिपादक थे । इस प्रकार एक ओर सभी संत भक्ति आंदोलन के उन्नायक थे, वहीं दूसरी ओर वे समाज-सुधारक भी थे ।
- नारी के प्रति दृष्टिकोण : यद्यपि सभी संतों ने वैवाहिक जीवन जीया । लेकिन फिर भी इनके वचनों में नारी को माया का रूप माना गया है । कनक और कामिनी को वे बंधनस्वरूप मानते हैं । कबीर के वचनों में : नारी की झाई परत, अँधा होत भुजंग । कबिरा तिन की कहा गति नित नारी संग ।। किंतु पतिव्रता नारी की मुक्त कंठ से प्रशंसा भी करते हैं । पतिव्रता नारी की तरह साधक की भी अपने प्रिय के प्रति अटूट निष्ठा और अन्यों के प्रति विरक्ति होती है ।
- रहस्यवाद : इन्होंने ईश्वर को पति रूप में और आत्मा को को पत्नी रूप में चित्रित कर अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना की है, जिसे रहस्यवाद की संज्ञा दी जाती है । संतों ने प्रणय के संयोग और वियोग दोनों ही अवस्थाओं को लिया है । उनके विरह में मीरा के विरह जैसी विरह-वेदना है । कबीर आदि संतों ने विरहिणी आत्मा की विरह-व्यथा की मार्मिक अभिव्यंजना की है ।
- बाह्य आडम्बरों का विरोध : सभी संत कवियों ने रुढ़ियों, मिथ्या आडम्बरों और अंध-विश्वासों का घोर विरोध किया है । मूर्ति-पूजा, तीर्थ-व्रत, रोजा-नमाज़, हवन-यज्ञ और पशु-बलि आदि बाह्य कर्मकांडों, आडम्बरों का उन्होंने डटकर विरोध किया है ।
- जातिपाति के भेद-भाव से मुक्ति : सभी संत कवियों ने मनुष्य को समान माना है और कोई भी भगवत-प्राप्ति कर सकता है । जाति-पाँति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई, आदि भावनाएँ इसी विचार की पौषक हैं । इस प्रकार संत साहित्य लोक-कल्याणकारी है ।
- प्रभाव : सिद्धौ और नाथ-पंथ के हठयोग, शंकर के अद्वैतवाद और सूफी-कवियों की प्रेम साधना का प्रभाव संतों की वाणी में दिखाई पड़ता है ।
- पंथों का उदय : प्राय: सभी संत निम्न जातियों में पैदा हुए । उनके प्रभाववश उनके पीछे निम्न वर्ण के लोगों ने उनके नाम से पंथ चला लिए; जैसे - कबीर-पंथ, दादू-पंथ आदि ।
- भजन और नाम स्मरण : संतों की वाणी में नाम स्मरण प्रभु मिलन का सर्वोत्तम मार्ग है ।
- भाषा-शैली : प्राय: सभी संत अशिक्षित थे । इसलिए बोलचाल की भाषा को ही अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया । धर्म-प्रचार हेतु वे भ्रमण करते रहते थे । जिस कारण उनकी भाषा में विभिन्न प्रान्तीय शब्दों का प्रयोग हुआ । इन्हीं कारणों से इनकी भाषा सधुक्कड़ी या बेमेल खिचड़ी हो गई, जिसमें अवधी, ब्रजभाषा, खड़ी बोली, पूर्वी-हिंदी, फारसी, अरबी, संस्कृत, राजस्थानी और पंजाबी भाषाओं का मेल है । साथ ही प्रतीकों और उलटबासियों की शैलियों का प्रयोग बहुतायत हुआ, जिससे भाषा में दुरुहता बढ़ी । संत काव्य मुक्तक रूप में ही अधिक प्राप्त होता है । संतों के शब्द गीतिकाव्य के सभी तत्वों- भावात्मकता, संगीतात्मकता, संक्षिप्तता, वैयक्तिकता आदि से युक्त हैं । उपदेशात्मक पदों में माधुर्य के स्थान पर बौद्धिकता अवश्य है । इन्होंने साखी, दोहा और चौपाई शैली का प्रयोग किया है ।
- छंद : संतों ने अधिकतर सधुक्कड़ी छंद का प्रयोग किया है । इनमें साखी और सबद प्रमुख हैं । साखी दोहा छंद है जबकि सबद पदों का वाचक है । संतों के सबद राग-रागिनियों में गाए जा सकते हैं । कबीर ने इनके अलावा रमैनी का भी प्रयोग किया है, जिसमें सात चौपाइयों के बाद एक दोहा आता है । इसके अतिरिक्त चौपाई, कवित्त, सवैया, सार, वसंत आदि छंदों का भी प्रयोग दिखाई पड़ता है ।
- अलंकार : संतों की वाणी सहज है । वह कोई साहित्यिक चेष्टा का परिणाम नहीं है । फिर भी उसमें स्वत: अलंकार-योजना हो गई है । उपमा, रूपक संतों के प्रिय अलंकार हैं । इसके अतिरिक्त विशेषोक्ति, विरोधाभास, अनुप्रास, यमक आदि का भी प्रयोग इनकी वाणी में मिल जाता है । उदाहरणार्थ : पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात । देखत ही छिप जाएगा ज्यों तारा परभात ।। (उपमा) नैनन की करि कोठरी पुतली पलंग विछाय । पलकों की चिक डारिकै पिय को लिया रिझाय ।। (रूपक)
- रस : संत काव्य में भक्तिपरक उक्तियों में मुख्यत: शांत रस का प्रयोग हुआ है । ईश्वर भक्ति एवं संसार-विमुखता का भाव होने के कारण निर्वेद स्थायीभाव है । रहस्यवाद के अंतर्गत श्रृंगार-रस का चित्रण है, जिसमें संयोग की अपेक्षा वियोग-पक्ष अधिक प्रबल है । विरही को कहीं भी सुख नहीं : कबीर बिछड्या राम सूँ । ना सुख धूप न छाँह । जहां कहीं ईश्वर की विशालता का वर्णन है, वहाँ अद्भूत रस है, सुंदरदास ने स्त्री के शरीर का बीभत्स चित्रण किया है ।
विशेष : आदिकाल के सिद्ध-साहित्य, नाथ-साहित्य और संत साहित्य को एक ही विचारधारा की तीन स्थितियाँ कहा जा सकता है ।
बहुत अच्छी और विस्तृत जानकारी। सहेज कर रखने लायक पोस्ट। आभार।
जवाब देंहटाएंइस जानकारी के लिए हार्दिक शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंइस लेख को उपलब्ध कराने के लिए आप को बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंthank u sir
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
जवाब देंहटाएंVery nice creativity
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी नेट परीक्षा के लिए उपयोगी तथ्य
जवाब देंहटाएंनिसंदेह ही आपने बहोत ही भले का काम किया है। जो वर्तमान में शिक्षा ग्रहण कर रहे शिक्षार्थियों आप इंटरनेट पर उपलब्ध करा रहे हैँ।
जवाब देंहटाएं"बहोत-बहोत धन्यवाद आपका,,
👏👏👏BaHuT-bAhUt DhAnYaD
जवाब देंहटाएंSIR question dalne ka maine iska assignment bna liye👏👏
Thank you
जवाब देंहटाएंThank you sir 😌मुझें इस जानकारी से बहुत फायदा हुआ 🤗
जवाब देंहटाएंToo much interesting thanku sir
जवाब देंहटाएंGyan ke liye bahut sahi study likhi Hain
जवाब देंहटाएंThank you so much for this information about hindi sahitya.
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