प्रेम-मार्गी काव्य की प्रवृत्तियाँ
प्रेम-मार्गी या प्रेमाश्रयी शाखा के कवियों ने सर्वव्यापक परमात्मा को पाने के लिए प्रेम को साधन माना है । इस शाखा के प्राय: सभी कवि सूफी साधक थे । इसी लिए इसे सूफी साहित्य की संज्ञा भी दी जाती है । सूफी साधना मूल रूप से ईरान की देन है । सूफी शब्द की व्युत्पत्ति सूफ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है फूस । यह शब्द उन संतों के लिए प्रयुक्त होता था, जो फूस(टाट) से बने वस्त्र पहनते थे और एक तरह से वैरागी का जीवन जीते थे ।सूफी परमात्मा को प्रेम का स्वरूप मानते हैं और उसे प्रेम द्वारा पाने की बात कहते हैं । प्रेम की पीर इस साधना का सबसे बड़ा सम्बल है । इन कवियों ने लोक -प्रचलित प्रेमाख्यान चुनकर उन्हें इस प्रकार से काव्य-रूप दिया कि लोग प्रेम के महत्व को पहचाने और प्रभु -प्रेम में लीन हों ।
सूफी फकीरों ने हिंदू साधुओं के रहन सहन, रंग-ढ़ंग, भाषा और विचार-शैली को अपना कर अपने ह्रदय की उदारता का परिचय दिया । अपनी स्नेहसिक्त प्रेममाधुरी युक्त वाणी से भारतीय जीवन की गहराई को छुआ । आतंकित और पीड़ित जनता के घावों को मरहम लगाने का कार्य करके उन्होंने हिंदू-यवन के भेद-भाव को दूर करने में योग दिया।
इस काव्य की अन्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं :-
- इस धारा के काव्य फारसी की मसनवी शैली में लिखे गए हैं , जिनमें मुहम्मद साहब की स्तुति, तत्कालीन बादशाह की प्रशंसा और गुरु परम्परा का परिचय दिया जाता है । भारतीय शैली की तरह ये सर्गबद्ध या कांडबद्ध नहीं हैं ।
- इन्होंने अपनी कथाओं का आधार हिंदु जन-जीवन में प्रचलित प्रेम-कहानियों को बनाया । इनमें हिंदु घरों का बहुत ही स्वाभाविक व वास्तविक चित्रण मिलता है ।
- लौकिक-प्रेम कथाओं द्वारा ही अलौकिक प्रेम की अभिव्यक्ति होने के कारण इन कवियों में रहस्यवाद की भावना आ गई है । इनका रहस्यवाद सरस और भावनात्मक है । इन्होंने आत्मा को पुरुष और परमात्मा को नारी के रूप में चित्रित किया है । साधक के मार्ग की कठिनाइयों को नायक के मार्ग की कठिनाइयों के रूप में चित्रित किया गया है । सूफी शैतान को आत्मा-परमात्मा के मिलन में बाधक समझते हैं और इस शैतान रूपी बाधा को सच्चा गुरु ही दूर कर सकता है । गुरु की सहायता लेकर साधना-मार्ग पर आरुढ़ होकर ईश्वर तक पहुँचने का प्रयत्न करता है । सूफी मत के अनुसार ईश्वर एक है, आत्मा (बंदा) उसी का अंश है । वह ईश्वर प्राप्ति में संलग्न रहता है । जब तक वह ईश्वर-मिलन नहीं कर लेता, उसकी विरह-वेदना का मार्मिक चित्रण इन काव्यों में मिलता है ।
- प्रेम-चित्रण में इन्होंने भारतीय और फारसी दोनों शैलियों को अपनाया । हिंदी काव्यधारा के प्रभाववश उन्हें महाकावय पद्धति के अनुसार लिखा गया । पद्मावत में ग्रीष्म-वर्णन, नगर-वर्णन, समुद्र-वर्णन, विरह-वर्णन, युद्ध-वर्णन आदि भारतीय महाकाव्य शैली में लिखे गए हैं । मसनवी काव्य में जिस प्रकार पाँच-सात छंदों के बाद विराम आता है, यहाँ कुछ चौपाइयों के बाद दोहा रखा गया है । मसनवी काव्यों में प्रेमिकाओं द्वारा आध्यात्मिक -प्रेम की व्यंजना होती है, यहाँ भी ऐसा ही हुआ है । इन प्रेम गाथाओं में नायक को नायिका की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील दिखाया गया है , यह भी फारसी साहित्य का प्रभाव है । साथ ही नागमति तथा पद्मावती जैसी नायिकाओं के प्रेम चित्रण द्वारा भारतीय-पद्धति के प्रति भी आस्था प्रकट की गई है । इस प्रकार सूफी प्रेमाख्यानों में भारतीय तथा ईरानी काव्य-धाराओं का संगम हुआ है ।
- यद्यपि कवियों का ज्ञान स्वाध्याय द्वारा अर्जित न होकर, सुना-सुनाया अधिक है । तत्कालीन प्रचलित दार्शनिक सिद्धांतों को स्थूल रूप में ही इन्होंने अपनाया है । इस प्रकार इनके साहित्य में न तो भारतीय-दर्शन के सूक्ष्म सिद्धांतों का प्रवेश हो पाया है और न ही पूरी तरह सूफी-दर्शन के सिद्धांतों का । केवल इतना ही कहा जा सकता है कि उन्होंने मूलत: सूफी मत को अपनाया । इन्होंने कबीर आदि निर्गुण संतों की भांति खंडन-मंडन की प्रवृत्ति को नहीं अपनाया ।
- सूफी कवियों का मुख्य केंद्र अवध था । इसलिए अवधी भाषा इनके काव्य की सहज भाषा थी । नूरमुह्मद ने ब्रजभाषा का भी प्रयोग किया । अरबी और फारसी के शब्द भी इनके काव्यों में बहुधा प्रयुक्त होते हैं । जायसी की अवधी में ठेठ और स्वाभाविक अवधी का रूप मिलता है ।
- इन कवियों को अपनी कथाओं में जहाँ कहीं दिव्य, अलौकिक अनुभुतियों को व्यक्त करने का अवसर मिला, उसको उन्होंने समासोक्ति और अन्योक्ति के माध्यम से पूर्ण किया । इसी कारण अनेक आलोचक इन्हें प्रतीकात्मक काव्य मानते हैं । इनकी अधिकांश रचनाओं में दोहा-चौपाई शैली का प्रयोग मिलता है । इसी पद्धति को बाद में तुलसी ने मानस में स्थान दिया । इन छंदों के अलावा कहीं-कहीं सोरठा, सवैया और बरवै छंद का प्रयोग भी मिलता है । अलंकारों के चुनाव में समासोक्ति और अन्योक्ति के अलावा उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति आदि अलंकारों भी आए हैं ।
- प्रेमाख्यान काव्य-प्रधान शैली में रचे गए हैं और प्रबंध काव्य के निर्वाह को निभाने की कोशिश हुई है ।
- प्रेमाख्यान काव्य में कथानक को गति देने के लिए कथानक में रुढ़ियों का प्रयोग किया गया है । ये कथानक रुढ़ियाँ भारतीय साहित्य परम्परा के साथ-साथ ईरानी-साहित्य परम्परा से भी ली गई हैं । जैसे चित्र-दर्शन , शुकसारिका आदि द्वारा नायिका का रूप श्रवण कर नायक का उस पर आसक्त होना, मंदिर में प्रिय युगल का मिलन आदि भारतीय कथानक रुढ़ियाँ हैं तथा प्रेम-व्यापार में परियों और देवों का सहयोग, उड़ने वाली राजकुमारियाँ आदि ईरानी साहित्य की कथानक रुढ़ियाँ हैं ।
- सभी प्रेमाख्यानों में प्रधानत: श्रृंगार के दोनों पक्षों संयोग तथा वियोग का चित्रण सुंदर रूप में हुआ है । परन्तु वियोग पक्ष का वर्णन अधिक मार्मिक बन पड़ा है । अन्य रस गौण हैं । पद्मावत में वीररस का समावेश मिलता है ।
विशेषत: सूफी कवियों ने अपनी रचनाओं में प्रेम के सार्वभौम स्वरूप का प्रतिपादन किया, यही उनकी एक बड़ी विशेषता है ।
सूफ़ी संतों के बारे में बहुत अच्छी जानकारी प्राप्त हुई।
जवाब देंहटाएंH sir
हटाएंIs aalekh se badi achhee jaankaree prapt hui..!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपके इस पोस्ट के दौरान अच्छी जानकारी प्राप्त हुई! धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंAcga
हटाएंसूफी साहित्य को समझने का अच्छा माध्यम मिला। इसे पढ़ कर मुझे लगा सूफी काव्य में आत्मा को परात्मा से मिलन को श्रृंगारिक रूप में वर्णित किया जाता है।
जवाब देंहटाएंउत्सुकता आज के गाने से जगी। मेरे रश्के क़मर हिंदी गाना नुसरत फतेह अली खान का क्या सूफी गाना कहलाएगा ?
जी बिल्कुल सूफी गीत कहलाएगा।
हटाएंBohat hi achha likha h
जवाब देंहटाएंJi tnanks
जवाब देंहटाएंPremakhyanak kavya rachnaon ka Kram
जवाब देंहटाएंAbout knowledge mila thanks
जवाब देंहटाएंAapne sach mai hi bhot acha article likha hai . Thankyou 🎨🐥
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंBht sandar
जवाब देंहटाएं*Thanks*
जवाब देंहटाएंWe satisfied with your words
जवाब देंहटाएंभक्ति काव्य प्रेम प्रधान काव्य है उदाहरण के सहित विस्तार से बताए
जवाब देंहटाएंSachme bahot badhia jaankari prapt hui.
जवाब देंहटाएंIska niskarsha me kya likhna hoga bataiye
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर लिखा है आप ने।
जवाब देंहटाएंThis website is nice
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